पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/५९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६५
परिशिष्ट

मैं समझता हूँ कि मैं बहुत-कुछ लिख चुका हूँ, इसलिए सोचता हूँ कि अब मुझे यह पत्र समाप्त कर देना चाहिए।

हृदयसे आपका,
पैनसिलवेनियन

[अंग्रेजीसे]

टाइम्स ऑफ इंडिया, १३-८-१९१९

परिशिष्ट ६

रौलट याचिका

सेवामें
परममाननीय भारत मन्त्री

महामहिम सम्राट्के निम्नलिखित हस्ताक्षरकर्ता
भारतीय प्रजाजनोंका विनम्र स्मरणपत्र

नम्रतापूर्वक और सादर इस प्रकार निवेदन करते हैं:

(१) हाल में ब्रिटिश लोकसभा (हाउस ऑफ कामन्स) में एक प्रश्नका उत्तर देते हुए आपकी इस घोषणाको आपके आवेदनकर्ताओंने बड़े खेदके साथ सुना कि आप अराजकतापूर्ण और विद्रोह सम्बन्धी अपराधोंके अधिनियमपर जो १९१९ का अधिनियम ११ कहलाता है (सामान्य तौरपर जो रौलट अधिनियमके नामसे प्रसिद्ध है) महामहिमको अस्वीकृति प्रदान करनेकी सलाह नहीं देंगे।

(२) आपके आवेदनकर्त्ता निवेदन करते हैं कि उक्त अधिनियममें ऐसी व्यवस्थाएँ हैं जो महामहिमकी भारतीय प्रजाकी स्वतन्त्रताके अत्यन्त प्रतिकूल हैं; इनमें कुछ ऐसी भी व्यवस्थाएँ हैं जो भारतीय कार्यकारिणीको वस्तुतः ऐसे अनियन्त्रित अधिकार देती हैं जिससे वह अपनी मर्जीसे महामहिमकी भारतीय प्रजाको देशकी सामान्य अदालतों में सुनवाईके हक से वंचित कर सकती हैं; उसमें कुछ ऐसी भी व्यवस्थाएँ हैं जो उक्त अधिनियम के अन्तर्गत मुकदमा चलानेके लिए रखे गये अपराधियोंको उन बहुत-सी सुविधाओंसे वंचित करती हैं जो सभ्य न्याय प्रणालीने उनकी बेगुनाही के संरक्षाणार्थं अत्यन्त आवश्यक मानी हैं।

(३) आपके आवेदनकर्ता आगे निवेदन करते हैं कि उपर्युक्त तथा अन्य ऐसी आपत्तियों के कारण जो उक्त अधिनियमके सिद्धान्त और उसकी व्यवस्थाओंपर उठाई जा सकती हैं, उसे भारत में सर्वत्र अस्वीकार किया गया है और इसका विरोध किया गया है और फलस्वरूप एक ऐसा प्रबल और विशाल आन्दोलन उठ खड़ा हुआ है। जैसा भारत में पहले कभी देखा अथवा सुना नहीं गया।