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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस अशान्ति और शिकायतोंसे अटूट सम्बन्ध है और इस मामलेकी अवश्य जाँच-पड़ताल होनी चाहिए। यह समिति महामहिमकी सरकारसे गम्भीरतापूर्वक अनुरोध करती है कि वह एक संसदीय समिति या ऐसे व्यक्तियोंका आयोग बनाये जिनका उपर्युक्त नीतिके बनाने, उसके बारेमें स्वीकृति देने या उसपर अमल करनेसे कुछ भी सम्बन्ध न हो। समिति अन्य मामलोंके अलावा निम्नलिखित बातोंको भी जाँचके क्षेत्रमें शामिल करनेका आग्रह करती है: (१) हालके उपद्रवोंके विरुद्ध की जानेवाली कार्रवाईके सम्बन्धमें भारत सरकार और पंजाब सरकारकी नीति; (२) पंजाबमें सर माइकेल ओ'डायरका कार्यकाल जिसमें भारतीय सेना और श्रमदलमें भरती करने के तरीकोंका, युद्धकोष जमा करनेका, फौजी कानूनके अमलका और अधिकारियों द्वारा अतिशय तथा गैर-कानूनी बलप्रयोगका विशेष ध्यान रखा जाये; (३) दिल्ली तथा अन्य स्थानों में होनेवाली हालकी घटनाएँ। समिति यह भी आग्रह करती है कि यह बात न्याय और किसी भी अच्छी सरकारके हितके लिए आवश्यक है कि जाँच शीघ्र ही शुरू हो। उसी बैठकमें समितिने एक उप-समिति नियुक्त की। (क) उस उप-समितिके निम्नलिखित कार्य निश्चित किये गये; जैसा भी वह निश्चय करे उसके अनुसार पंजाब और अन्य स्थानोंमें घटी घटनाओंकी एक एजेंसी द्वारा जाँचका प्रबन्ध करना, (ख) इस सिलसिले में भारत या इंग्लैंडमें कानून या अन्य प्रकारकी जरूरी कार्रवाई करना और (ग) इस कामके लिए जनतासे चन्दा करके कोष संग्रह करना। उप-समितिमें शामिल होनेवाले लोगोंके नाम नीचे दिये जाते है: पण्डित मदनमोहन मालवीय, पदेन अध्यक्ष; सर रासबिहारी घोष, पंडित मोतीलाल नेहरू, सैयद हसन इमाम, श्री बी० चक्रवर्ती, श्री चित्तरंजन दास, श्री कस्तूरी रंगा आयंगार, श्री उमर सोबानी और पंडित गोरखनाथ मिश्र, पदेन सचिव। इन्हें अन्य लोगोंको सदस्य विनियुक्त करनेका अधिकार होगा। उप-समितिने १६ अक्तूबर, १९१९ को अपनी बैठकमें निम्नलिखित सदस्योंको विनियुक्त किया - श्री गांधी, स्वामी श्रद्धानन्द, श्री पुरुषोत्तमदास टंडन, श्री जवाहरलाल नेहरू, श्री गणपत राय, शेख उमर बख्श, बख्शी टेकचन्द, श्री गोकुलचन्द नारंग, श्री संतानम्, बदरुल इस्लाम अली खाँ और लाला गिरधारीलाल।

फौजी कानून हटने के तुरन्त बाद हम लोग जिन्होंने नीचे हस्ताक्षर किये हैं पंजाब गये और विगत २५ जूनको अपनी जाँच-पड़ताल शुरू की। कहने की जरूरत नहीं कि हर कदमपर हमें उन जन नेताओंकी मददकी जरूरत महसूस हुई जो अपने-अपने नगरोंके जन-जीवनमें प्रमुख स्थान रखते थे और जिनमें से किसीने भी उपद्रवोंके बाद हुई महत्त्वपूर्ण घटनाओं में भाग नहीं लिया था। हमने पाया कि बहुत-से लोग जो यह जानते थे कि क्या हुआ, पुलिसके कल्पित या वास्तविक भयसे गवाही देनेके लिए आगे नहीं आते थे। जब हम अपनी जाँचके काममें लगे हुए थे, हंटर समितिकी नियुक्तिकी घोषणा हुई और हमने जाँचके लिए गवाही इकट्ठा करनेके अपने प्रयत्न दूने कर दिये। परन्तु जैसे-जैसे हम आगे बढ़े, हमें अधिकाधिक महसूस होने लगा कि कुछ बहुमूल्य गवाही एकत्र करनेके सम्बन्धमें मार्ग-प्रदर्शन तथा सहायताके लिए पंजाबके मुख्य नेताओंकी उपस्थिति जरूरी है, ताकि वे उन लोगोंको जो अब भी डरके मारे