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परिशिष्ट

आगे नहीं आते, हिम्मत बँधायें और इसका लाभ बतायें। यह भी बतायें कि सरकार चाहती है कि जाँच निष्पक्ष हो, इसलिए वे चाहते हैं कि हंटर समितिको सच्ची बातें पूरी तरह बता दी जायें।

हमने यह भी इच्छा व्यक्त की थी कि समितिको मार्शल लॉ आयोग और 'समरी' अदालतों द्वारा दी गई सजाओंपर पुनर्विचारका अधिकार दिया जाये; क्योंकि हमारा दृढ़ विश्वास है कि इस आयोग एवं इन अदालतोंके फैसलोंमें ऐसा अन्याय हुआ है जिसका बहुत दिनोंतक और स्थायी प्रभाव भी बना रह सकता है। किन्तु भारत सरकारने हंटर समितिका अधिकार क्षेत्र सीमित कर दिया और उक्त सजाओंपर पुनर्विचारके लिए विशेष न्यायाधीशोंकी नियुक्ति की नियुक्त किये गये दोनों न्यायाधीश पंजाबके थे। गलत हो या सही, जनताने यह कार्य पंजाबके न्यायाधीशोंको सौंपनेपर आपत्ति की। (हम समझते हैं कि यह सही ज्यादा है, गलत कम)। इसलिए ऐसा न्यायाधिकरण बनाया जाना जरूरी था जिसमें जनताको विश्वास हो और इसलिए कमसे-कम एक न्यायाधीश पंजाबके बाहरका होना चाहिए। न्यायाधिकरणको यह अधिकार भी दिया जाना चाहिए कि जहाँ लेखा अपर्याप्त पाया जाये या जहाँ प्रारम्भिक सुनवाई में कामकी गवाही दर्ज न की गई हो, वहाँ नये सिरेसे गवाही ली जा सके। हमें थोड़ी-सी यह आशंका भी थी कि हमारे वकीलोंको शायद समितिके सामने जानेकी अनुमति न मिले और यदि मिले भी तो शायद उन्हें जिरह करनेका हक न दिया जाये। हम यहाँ थोड़े में कह दें कि हमारी इच्छा जल्दी जाँच करवाकर कटुतासे बचने की थी। इसीलिए हमने अपनी यह महत्त्वपूर्ण आपत्ति वापस ले ली कि एक ऐसा शाही आयोग जाँच करे जिसकी नियुक्ति स्वतन्त्र रूपसे भारत सरकार द्वारा की गई हो।

अक्तूबरके आरम्भमें हमने लिखकर भारत सरकारको यह सूचित किया था कि हमारी उप-समितिने हंटर समितिके समक्ष लोगोंका मामला रखनेके लिए वकीलोंकी व्यवस्था की है। हमने यह भी जानना चाहा कि समितिके जाँचके मुद्दे क्या होंगे और वह जाँचकी कौन-सी पद्धति अपनायेगी। भारत सरकारने हमसे कार्यपद्धतिकी जानकारीके लिए हंटर समितिसे पूछताछ करने के लिए कहा। इसलिए हमने लॉर्ड हंटरकी समितिको अपने वकीलके जरिये बयान देने और दूसरे पक्षके गवाहोंसे जिरह करनेकी अनुमतिके लिए लिखा।

उसी पत्रमें हमने हंटर समितिको सूचित किया कि पंजाबकी हालकी घटनाओंकी सही और निष्पक्ष जाँचके लिए हम यह भी उतना ही जरूरी समझते हैं कि जेलकी सजा भुगतनेवाले पंजाबके नेताओंको जाँचकी अवधितक पैरोल या जमानतपर रिहा कर देना चाहिए। फिर भी हमने सोचा कि इस मामलेके उचित प्राधिकारी पंजाब सरकार और उपनिवेश मन्त्री हैं; अतः उन्हें ही इस बारेमें लिखा जाये। इस बातको दृष्टिमें रखते हुए बहुत दिन पहले विगत १२ सितम्बरको भारतीय विधान परिषद्की एक बैठक में हममें से एकने भारत सरकार और पंजाब सरकारसे अनुरोध किया था कि वह व्यक्तिगत जमानत या धन या दोनों तरहकी जमानतोंपर, जिसे भी पंजाबके