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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नर पर्याप्त समझें, पंजाबके नेताओंको रिहा कर दें ताकि वे समितिके सामने बयान दे सकें और ठीक तरहसे लोगों का पक्ष रखवा सकें। गत मासकी २७ तारीखको भारत मन्त्रीको एक तार भेजा गया जिसमें प्रार्थना की गई थी कि जब लॉर्ड हंटरकी समिति के सामने सबूत देनेका समय आये तब वकीलको अदालतमें जानेका अधिकार दिया जाये और जाँचके लिए पंजाबके नेताओंको रिहा किया जाये। उपर्युक्त तीनों मुद्दोंके बारेमें पंजाब सरकारको भी लिखा गया था।

काफी समय तक पत्र-व्यवहार हुआ और वकीलको अदालतमें जाने और जिरह करनेका अधिकार दे दिया गया और कांग्रेस उप-समितिको भी स्वीकृति दे दी गई। पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री मल्लिकको दो पुनर्विचारक न्यायाधीशोंमें से एक नियुक्त किया गया। हमारे पास ऐसा विश्वास करनेका कारण है कि पूर्वोल्लिखित परिस्थितियोंमें न्यायाधीशोंको नये सिरेसे गवाही दर्ज करनेका हक भी दिया गया। परन्तु उतनी ही महत्त्वपूर्ण, तीसरी माँग पूरी नहीं की गई। पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरने प्रमुख नेताओंको समुचित जमानतपर रिहा कर देनेकी हमारी प्रार्थना यह कहकर अस्वीकार कर दी: "इस सुझावके सम्बन्धमें कि मामलेको सन्तोषजनक ढंगसे पेश करनेके लिए उपद्रवोंके लिए सजा पाये हुए कुछ कैदी जेलसे रिहा कर दिये जायें, मेरा कहना है कि उसे मानना सम्भव नहीं होगा। फिर भी यदि समिति किसी कैदीका बयान सुनना चाहेगी तो इसकी उचित व्यवस्था कर दी जायेगी और यदि समिति यह आवश्यक समझे कि जाँचमें लगे वकीलको जाँचके सिलसिले में सलाह-मशविरेके लिए कैदियोंसे भेंट करनी चाहिए तो इसके लिए भी उसे उचित सुविधाएँ दी जायेंगी।" हमने इस उत्तरको अत्यन्त असन्तोषजनक समझा। हम इस गलतीको ठीक करवानेके लिए लॉर्ड हंटरकी समितिके पास गये। हम सब लोग लॉर्ड महोदयकी समितिके प्रस्तावित कार्यके लिए दक्षिण आफ्रिकाकी १९१३ की सॉलोमन समितिका पूर्व-दृष्टान्त दुहरानेवाले थे, किन्तु हमारा सुझाव अस्वीकार कर दिया गया। उसके बाद श्री गांधीने लेफ्टिनेंट गवर्नरसे भेंट की। माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नर प्रमुख नेताओंको उस दिन या उन दिनों जब कि उन्हें लॉर्ड हंटरकी समितिके सामने गवाही देनी हो, पैरोलपर रिहाईकी अनुमति देनेके लिए तैयार थे और वे यह भी चाहते थे कि वकील जेलमें उन सभी कैदियोंसे मिलें जिन्हें समितिके सामने गवाही देनी थी। किन्तु यह स्पष्ट था कि पूर्व स्थितिसे आगे जाकर माननीय लॉर्ड महोदय द्वारा नेताओंकी रिहाईकी मांग तो सिद्धान्त रूपसे स्वीकार की जा रही थी किन्तु उस मांगका महत्त्वपूर्ण और सबसे व्यावहारिक भाग अस्वीकार कर दिया गया था।

हम प्रमुख नेताओंको रिहा करवाकर और उन्हें समितिके कमरेमें उपस्थित करवाकर अपने वकीलके लिए गवाहोंसे जिरह करनेमें मूल्यवान सहायता प्राप्त करना चाहते थे। जो लोग कानूनके बारेमें थोड़ा-सा भी जानते हैं वे इस कथनके सारको आसानीसे समझ जायेंगे कि मुकदमेकी सुनवाईके समय सम्बन्धित व्यक्तिकी उपस्थिति, यदि वह समझदार हो तो, बहुत सहायक होती है। अभियुक्तके अभाव में कोई मुकदमा नहीं हो सकता। लॉर्ड हंटरकी समिति एक तरहसे इन नेताओंपर, सम्राट्के विरुद्ध