इस विधानका अपनी विशेष शक्तिसे निषेध करनेकी व्यवस्था है। यह धारा निश्चय ही अत्यन्त असाधारण परिस्थितियों में प्रयुक्त होनेके लिए है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि एशियाई अधिनियम एक असाधारण स्थिति उत्पन्न करता है; इसलिए यह सम्राट्के निषेधका पात्र है।
परन्तु इस तारकी सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह तथ्य है कि संघ सरकारने आयोग- की नियुक्तिका वचन संघ संसदमें भारतीयोंके "आलोचकों" को एक "रियायत" के रूपमें दिया है। इसलिए अगर भारत सरकार सावधान न रही तो बहुत सम्भव है कि भारतीयोंके लिए यह आयोग दक्षिण आफ्रिकी विधान-सभाकी भाँति वरदानके स्थानपर अभिशाप बन जाये। इसलिए ब्रिटिश भारतीय संघका यह आग्रह करना कि परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदय सम्राट्को एक ऐसे शाही आयोगके नियुक्त करनेकी बात सुझायें जिसमें संघके तथा भारतीय हितोंका प्रतिनिधित्व हो, अस्वाभाविक नहीं है। श्री अस्वातके इस प्रस्तावसे अधिक उचित कोई प्रस्ताव हो ही नहीं सकता। मैं यह इसलिए कह रहा हूँ कि अधिकारतः यह तय करनेके लिये किसी आयोगकी जरूरत है ही नहीं; दक्षिण आफ्रिकामें यूरोपीय प्रवासियोंको व्यापार सम्बन्धी और जायदादकी मिल्कियत सम्बन्धी हक जिन शर्तोंके साथ सुलभ हैं उन्हीं शर्तोंके साथ भारतीय प्रवासियोंको भी जहाँ चाहें व्यापार करने और जमीनके मालिक बननेके अधिकार मिलने चाहिए। यह तो उनकी कमसे कम माँग हो सकती है। परन्तु इस साम्राज्यके जटिल विधानके अन्तर्गत अन्ततोगत्वा जो न्याय देना ही पड़ता है, बहुत घुमा-फिराकर दिया जाता है। चतुर कप्तान तेज हवाके खिलाफ जहाज ले जानेके बजाय मार्ग बदल देता है और फिर भी अपने गन्तव्य स्थानपर उससे भी कम समय में पहुँच जाता है जितना उसे अन्यथा लगाना पड़ता। उसी तरह श्री अस्वात एक स्वयंसिद्ध विषयके सम्बन्धमें आयोग नियुक्त करनेके सिद्धान्तको स्वीकार कर लेनेकी बुद्धिमत्ता दिखाते हैं, उतनी ही बुद्धिमत्ताके साथ वे ऐसे आयोगकी नियुक्ति चाहते हैं जो निष्फल न हो और जो दक्षिण आफ्रिकामें शासन करनेवाली जातिसे यह कहनेका साहस करे कि आप लोग उस साम्राज्यके सदस्योंकी हैसियत से -- जिस साम्राज्य में गोरोंकी अपेक्षा रंगदार लोगोंकी संख्या अधिक है - अपनी सहप्रजा, भारतवासियोंके साथ गुलामों-जैसा बर्ताव न करें। सम्राट्की सरकार चाहे उपरोक्त प्रस्तावको स्वीकृत करे अथवा किसी दूसरे प्रस्तावको, यह बात स्पष्ट रूपसे उसे बता दी जानी चाहिए कि भारतकी जनता दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए ब्रिटिश भारतीयोंके बुनियादी अधिकारोंका खत्म किया जाना बर्दाश्त नहीं करेगी।
मो० क० गांधी
- [ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १६-८-१९१९