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१९. पत्र : अखबारोंको[१]

अगस्त १४,१९९९

दक्षिण आफ्रिका से आये हुए तारके तुरन्त बाद ही फीजीसे निम्नलिखित तार प्राप्त हुआ है:

भारतीय साम्राज्यीय संघ (इंडियन इम्पीरियल एसोसिएशन) फीजी सरकार द्वारा भारतीय गिरमिट प्रथाकी समाप्तिके प्रश्नके स्थगनपर खेद प्रकट करता है। संघ इसका सख्त विरोध करता है और गिरमिट प्रथाको अविलम्ब बन्द करनेकी प्रार्थना करता है।

फीजी के सम्बन्धमें वाइसराय की घोषणाके पश्चात् तो मैंने सोचा था कि अब भारतीय गिरमिटियोंका फीजीमें आना ही बन्द हो जायेगा। श्री पियर्सन और श्री एन्ड्रयूजने हम लोगों को इस प्रथा के बारेमें बहुत कुछ बतला दिया है। इस तारसे यह स्पष्ट हो जाता है कि फीजी द्वीपकी सरकारने पहले गिरमिट प्रथाको अविलम्ब समाप्त कर देनेका निर्णय कर लिया था; परन्तु अब उसने अपना निर्णय बदल दिया है और उसकी समाप्तिकी कार्रवाई स्थगित करना चाहती है। आशा है कि भारत सरकार कार्यक्रमके इस परिवर्तनपर कुछ प्रकाश डालेगी। जनताको गिरमिट प्रथाकी समाप्ति के स्थगनको भारी सन्देहकी दृष्टिसे देखनेका अधिकार है।

[ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १५-८-१९१९

[ मो० क० गांधी ]

२०. भाषण : स्वदेशी भण्डार, गोधरामें

अगस्त १४, १९१९

भेंटसे[२] पहले [ स्वदेशी ] भंडारका उद्घाटन समारोह हुआ। गोधरामें ही बना चाँदीका एक ताला और ताली श्री गांधीको भेंट स्वरूप दिये गये। भण्डारके मालिकोंने, जिन्होंने यह काम जनसेवाके भावसे प्रेरित होकर शुरू किया है, श्री गांधीसे यह ऐलान कर देने को कहा कि गोधरामें जो लागत बैठती है उसपर ७.५ की सदीसे अधिक मुनाफा न लिया जायेगा। अर्थात् उसमें रेलभाड़ा और पैकिंगका खर्चा जोड़कर बम्बईकी दरपर चीजोंकी बिक्री की जायेगी। यह ऐलान केवल उन वस्तुओंके सम्बन्धमें लागू होगा

  1. यह १६-८-१९१९ के यंग इंडिया में एक टिप्पणीके रूपमें तथा इंडियन रिव्यू, अगस्त १९१९ में भी प्रकाशित हुआ था।
  2. गोधरा के कलक्टर श्री क्लेटन द्वारा बेगार प्रथाके सम्बन्धमें स्थानीय नेताओं को दी गई थी।