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परिशिष्ट

हुआ, जिससे हमें लगा हो कि उसे सम्भवतः भुलाया जायेगा या उसकी उपेक्षा की जायेगी। लेकिन अब चूंकि मित्र राष्ट्रों और साथी देशोंकी नीति और इस्लामके निर्देश एक-दूसरेके विरुद्ध जाते दिखाई देते हैं, इसलिए हम सादर यह कहना चाहते हैं कि न्याय और उपयुक्तता दोनोंका तकाजा है कि जिस व्यवस्था में मानव द्वारा परिवर्तन नहीं किया जा सकता और जिस व्यवस्था में इस्लामके विगत तेरह शताब्दियोंके जीवनकालमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ, वह अपरिवर्तित ही रहेगा। और जिस व्यवस्थामें परिवर्तन हो सकता है तथा परिस्थितियाँ और वातावरणके बदलनेके साथ ही जो परिवर्तनीय है, उस व्यवस्थामें जरूरी होनेपर परिवर्तन किया जाना चाहिए। साम्राज्य के हितार्थ मुसलमानोंकी प्यारीसे-प्यारी भावनाकी भी बलि दी जा सकती है, फिर भी हम सविनय निवेदन करते हैं कि सच्चे साम्राज्यवादमें साम्राज्यके हर सदस्यकी इच्छाओं और भावनाओंका समान ध्यान रखा जाना चाहिए। लेकिन इस्लामी कानून इतने सुनिश्चित और अनिवार्य हैं कि जिस प्रकार वे स्वयं मुसलमानोंकी लौकिक आकांक्षाओंकी पूर्ति के लिए उनको थोड़ा भी कम-ज्यादा नहीं किया जा सकता, वैसे ही मित्र राष्ट्रों एवं साथी राष्ट्रों द्वारा उनमें अपने सुभीते के अनुसार बाल-भर भी फर्क नहीं किया जा सकता। ये अल्लाह द्वारा निश्चित की गई सीमाएँ हैं, जिनका उल्लंघन कोई नहीं कर सकता। लेकिन मुसलमान अपने धार्मिक कर्त्तव्योंके बारेमें दृढ़ रुख अपनाते हुए आपकी सेवामें सादर निवेदन करना चाहते हैं कि साम्राज्यका सच्चा हित और इस्लामी हिदायतें एक ही रास्तेकी ओर संकेत करती हैं। युद्ध भले ही समाप्त हो गया हो, लेकिन शान्ति अभी दूर और संदिग्ध है और साम्राज्यके अधिकारियोंसे हमारी विनती है कि वे मुसलमानों की मंत्री और भारतकी वफादारीका मूल्य कम न आँके। प्रसन्नताकी बात है कि भारत के मुसलमान और गैर-मुसलमान एक हो गये हैं और कन्धेसे-कन्धा भिड़ाकर खड़े हैं। इसलिए ऐसे समझौते से जो दोनोंको ही अमान्य हो, शान्तिकी स्थापना नहीं हो सकती; क्योंकि उससे न्याय और सन्तोषकी भावना पैदा नहीं होगी। मुक्तिकी आशा रखने और इसके लिए दुआ माँगनेवाला कोई भी मुसलमान चैनसे नहीं बैठेगा, वह तो इस्लामकी हिदायतोंपर चलकर ही मुक्तिकी आकांक्षा करेगा; चाहे उसका परिणाम कुछ भी क्यों न निकले। इसके विपरीत यदि भारतका हृदय राष्ट्रमण्डलके सदस्य के रूपमें उसकी स्वशासनकी योग्यताको स्वीकार करके जीत लिया गया और मुसलमानोंको उनकी इस्लामी जिम्मेदारियों और कर्त्तव्योंको उचित ढंगसे स्वीकार करके खुश कर लिया गया, तो आधी दुनियाके मुसलमानोंकी भावनाएं ब्रिटेनके साथ होंगी और दुनियाकी कोई ताकत उसे उन अधिकारोंसे वंचित करनेका साहस नहीं कर सकती जो उसके और उसके साम्राज्यके हैं। जो संकट इसी समय इतना बड़ा दिखाई दे रहा है, क्रोधमें एक भी प्रहार किये बिना और व्यर्थकी लड़ाई में खूनकी एक बूँद भी बहाये बिना विलीन हो जायेगा। तब दुनिया सच्चे अर्थों में लोकतन्त्रके ही नहीं, ईश्वर और सत्यके पक्षमें होगी। इसी भावनाके साथ हम आपकी सहायतासे अपने शिष्टमण्डलको ब्रिटेन, मित्र देशों और साथी देशोंमें भी भेजना चाहते हैं। हमें यह भी विश्वास है कि यदि हमारे शिष्टमण्डलको एक बार अपनी सफलताका भरोसा हो