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भाषण : गोधराकी महिला सभा में

जिनकी स्वदेशी व्रत लेनेवालोंको आवश्यकता पड़ती है। भण्डारका उद्घाटन एक विशाल जनसमूहके समक्ष किया गया। श्री गांधीने कहा कि इस भण्डारकी सफलता उसके प्रबन्धकोंकी ईमानदारी और गोधरा निवासियोंकी देशभक्तिको भावनापर निर्भर करेगी।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २०-८-१९१९

२१. भाषण : गोधराकी महिला- सभामें

अगस्त १४, १९१९

महिलाओं की सभा शासके चार बजे शुरू हुई। लगभग एक हजार महिलाएँ उपस्थित रही होंगी। खान साहब कोठावालाकी सुसंस्कृत पत्नी श्रीमती जेरबानू मेर-वानजी कोठावालाने सभाकी अध्यक्षता की। इस सभा में गांधीजीने जो भाषण दिया उसका सार यह है:

श्री गांधीने कहा कि आज इस सभामें श्रीमती क्लेटन आई हुई हैं, उनकी उपस्थिति के लिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ। मुझे यकीन है कि इस कृतज्ञता ज्ञापनमें आप लोग मेरे साथ हैं। श्री गांधीने उपस्थित महिलाओंको संक्षेपमें उनका परिचय देनेके पश्चात् कहा कि हम लोगोंके अन्दर स्वदेशी भावना वह भावना है जो हमें दूसरोंसे पहले अपने नजदीकी पड़ोसियों की सेवा करना तथा अधिक दूरके लोगों द्वारा तैयार की गई चीजोंकी अपेक्षा नजदीकी पड़ोसियोंकी बनाई नई चीजों का उपयोग करना सिखाती है। ऐसा करनेसे हम अपनी शक्ति-भर मानव-जातिकी ही सेवा करते हैं। आप अपने पड़ोसियोंकी ओरसे लापरवाह होकर मानव-जातिकी सेवा नहीं कर सकते। अपनी आवश्यकताओंके बारेमें भी यही समझिये। हमारा कर्त्तव्य है कि हम अपनी आवश्यकताओंकी पूर्ति अपने पड़ोसियों द्वारा तैयार की गई वस्तुओंसे करें और अधिक दूरके लोगोंके मुकाबले अपने पड़ोसियोंकी मेहनत और उनके द्वारा तैयार मालको तरजीह दें। सौ वर्ष हुए भारत- ने स्वदेशीका परित्याग किया और फलस्वरूप वह अपेक्षाकृत निर्धन और असहाय हो गया। जब हम स्वदेशीके नियमपर चलते थे तब हम लोग अपनी आवश्यकता-भर वस्त्र जुटा लेते थे और इतना ही नहीं, दूसरे देशोंके बाजारोंको भी कुछ माल दे पाते थे। उस अवधि भारतकी अधिकांश स्त्रियाँ राष्ट्रीय कर्त्तव्य समझकर सूत काता करती थीं और पुरुष उस सूतसे कपड़ा बुन लिया करते थे। आजकल भारतके २१ करोड़ किसान सालमें कमसे कम चार मास निठल्ले रहते हैं। वे कामसे जी चुरानेवाले लोग नहीं हैं किन्तु उनके पास अवकाशका सदुपयोग करने तथा खेतीसे होनेवाली आमदनी में वृद्धि करनेके लिए कोई काम ही नहीं रहता। इसलिए स्वदेशीका अर्थ हमारे किसानोंके लिए एक अतिरिक्त काम खोज निकालना है । संसारका कोई भी देश जिसके अधिकांश निवासियों का एक-तिहाई समय काममें न आ पाता हो, समृद्ध नहीं हो सकता। इसके अति-