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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रिक्त, ऐसे अनेक पुरुष और स्त्रियाँ हैं जिनके पास दिनमें कई घंटे खाली रहते हैं। यदि राष्ट्रके इस समयका सूत कातने और कपड़ा बुननेमें पूरा-पूरा उपयोग किया जाये तो हम अपनी जरूरतके लायक पूरा कपड़ा बनाकर हर साल विदेशोंको जानेवाले करोड़ों रुपयोंकी बचत कर सकते हैं। सफलता तभी मिल सकती है जब सुसंस्कृत पुरुष और स्त्रियाँ कताई और बुनाईका काम हाथमें ले लें। फिर अपेक्षाकृत गरीब लोग भी वैसा करने लगेंगे। लेडी दोराबजी टाटा, लेडी पेटिट और श्रीमती जयजी पेटिटने सूत कातनेकी कला सीखने तथा उसे अन्य महिलाओंको सिखानेका वचन दिया है। श्रीमती रमाबाई रानडेने भी इच्छा व्यक्त की है कि उनके सेवासदन में चरखेका संगीत सुनाई दे। श्रीमती बैंकर नित्य छः घंटे चरखा चलाती और महीन सूत कातती हैं। इस प्रकार काता गया सूत वे राष्ट्रको सौंप देती हैं। गोधराकी बहनोंसे भी ऐसी ही आशा है। मैं अपने यूरोपीय मित्रोंसे भी यही कहने में संकोच न करूँगा। एक यूरोपीय महिलाने यह काम शुरू भी कर दिया है। मैं आशा करता हूँ कि जिन लोगोंको आर्थिक सहायताकी आवश्यकता नहीं है वे भी सूत कातकर राष्ट्रको प्रतिदिन कमसे कम अपना एक घंटा देनेका संकल्प करेंगे। इस दिशा में प्रोत्साहन देनेके लिए आप लोगोंको यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि आप आजसे विलायती कपड़ा नहीं खरीदेंगे। इस प्रकार जहाँतक जीवनकी दो मुख्य आवश्यकताओं - भोजन तथा वस्त्रका सम्बन्ध है, भारतका प्रत्येक गाँव स्वावलम्बी हो जायेगा और जरूरतकी इन चीजोंको खुद ही बना लिया करेगा।

अध्यक्षाने सभामें उपस्थित महिलाओंसे कहा कि आप लोग गांधीजीके बताये मार्गपर चलकर आन्दोलनकी सहायता करें। श्रीमती क्लेटनने कहा कि मुझे इस सभामें उपस्थित होकर प्रसन्नता हुई है, मैं सदासे गृह-उद्योगोंके पक्षमें रही हूँ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, २०-८-१९१९

२२. भाषण : गोधराकी सार्वजनिक सभामें[१]

गोधरा

अगस्त १४, १९१९

भाषण के प्रारम्भमें ही श्री गांधीने सभाकी अध्यक्षता करनेके लिए श्री क्लेटनके प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि श्री क्लेटनने संयोजकोंका निमन्त्रण जिस शर्तपर स्वीकार किया है उसे मैं जानता हूँ और मैं उसे ठीक समझता हूँ। शर्तपर अमल करनेकी मैं पूरी-पूरी कोशिश करूँगा। मेरे लिए स्वदेशीके राजनैतिक पहलूकी अपेक्षा आर्थिक और धार्मिक पहलू कहीं अधिक आकर्षक हैं। मेरा स्वप्न तो यह है कि

  1. सभा वनिता-विश्राम, गोधराका निरीक्षण करनेके बाद हुई थी। गांधीजीका भाषण सुननेके लिए विशाल जनसमूह उपस्थित था।