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२४. सर शंकरन नायर और सरकार

खेड़ा और चम्पारन के सम्बन्ध में सर शंकरन नायरकी[१] अकाट्य टिप्पणियोंके खण्डन की कोशिश करने के पीछे वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्के उनके सहयोगी सदस्योंकी भावना क्या रही होगी, यह समझ पाना कठिन है। उन्होंने इस प्रकार केवल यही जाहिर किया है कि अपने सहयोगीका दृष्टिकोण समझने या उसका महत्त्व देख सकनेकी क्षमता उनमें नहीं है। सर शंकरन् की टिप्पणियोंके उनके जवाब से नौकरशाही पद्धति की जड़ता स्पष्ट होती है। उन्होंने सर शंकरन्‌को गलत सिद्ध करनेकी चेष्टा करके उन्हें उसका मुंहतोड़ जवाब देनेपर मजबूर कर दिया और इस प्रकार अपने हाथों अपनी ही कलई और खोली। यदि मैं ठीक समझ पाया हूँ, तो सर शंकरन् नायर वर्तमान पद्धतिकी जड़ताको सिद्ध करने तथा इस आरोपका उत्तर देने में सफल हुए हैं कि कांग्रेस या शिक्षित भारतीय, जनताका प्रतिनिधित्व नहीं करते या उनको जनताके हितों की परवाह नहीं है।

हम खेड़ाका ही मामला लें और उसपर बम्बई सरकारकी टिप्पणीके विषय में विचार करें।[२]

सपरिषद् गवर्नर ऐसा मानते हैं कि सर सी० शंकरन द्वारा किया हुआ वर्णन इतना भ्रामक है कि भारत-मन्त्री या संसदको भेजनेसे पूर्व उसमें प्रगट किये गये उनके विचारोंमें कुछ प्रामाणिक संशोधन करना जरूरी है।

यह आवश्यक कर्त्तव्य निबाहनेके लिए पहले सरकारने मालगुजारी प्रथाके "उस अत्यन्त जटिल विषयके" सम्बन्धमें विचार व्यक्त करनेकी कठिनाईमें सर शंकरन् नायरके साथ सहानुभूति दिखाई है जो विशेष ज्ञानकी अपेक्षा रखता है। मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूँ कि यह अत्यन्त ही भ्रामक कथन है। मालगुजारी प्रथामें कोई ऐसी जटिलता नहीं है और न वह केवल विशेषज्ञोंका विषय है। उसमें जितनी - कुछ जटिलता दिखाई पड़ती है वह सब प्रशासकोंकी कृपासे है। सर शंकरन् ने 'जटिलता और विशेषज्ञता' को विशेषज्ञोंके लिए छोड़ दिया है और केवल उन मुख्य सिद्धान्तोंपर ही लिखा है जिन्हें एक साधारण व्यक्ति भी आसानीसे समझ सकता है। मुझे सिर चकरा देनेवाले मालगुजारीके नियमों और समय-समयपर उनमें किये गये संशोधनोंको पढ़नेकी तकलीफ उठानी पड़ी है और मैं यह बात पूरी तरह मानता हूँ कि समय पड़नेपर स्मृतिसे सिर्फ विशेषज्ञ ही उन्हें प्रस्तुत कर सकते हैं। परन्तु वास्तवमें वे नियम आफतके मारोंकी सहायताके लिए नहीं बल्कि इसलिए बनाये गये हैं कि लगानकी जो दर निर्धारित है और जो लगभग अधिकतम ही है, बाकायदा

  1. सर सी० शंकरन् नायर (१८५७-१९३४); मद्रास हाइकोर्ट के न्यायाधीश; वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्के सदस्य। मद्रास रिव्यू, मद्रास लॉ जरनल व मद्रास स्टैंडर्डके सम्पादक।
  2. देखिए परिशिष्ट ४