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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पाई-पाई, ठीक समयपर वसूल हो सके। मैं यह बात भी पूरी तरह मानता हूँ कि अपनी योग्यताके बावजूद सर शंकरनके लिए ऐसे किसानोंसे, जिनके पास लगान देनेके लिए पैसे ही नहीं हैं, वसूली करनेका कोई अच्छा तरीका निकालना बहुत कठिन था। परन्तु एक इतनी साधारण-सी बात समझनेके लिए कि खेड़ामें सन् १९१७ में पूरी फसल हुई थी या नहीं या कि भारी वर्षासे इतना अधिक नुकसान हुआ था कि रैयतको करकी अदायगी मुल्तवी रखनेकी राहत पानेका हक था, कोई बड़ी योग्यता अपेक्षित नहीं है। बम्बई सरकारकी विज्ञप्तिका अधिकृत रूपसे यह कहना कि विधान परिषद् के सामने जो प्रस्ताव रखा गया है और सर शंकरन् ने जिसका उल्लेख किया है "एकदम अव्यावहारिक है", साधारण जनताको -- भारतमन्त्री तथा संसदको भी इसी श्रेणीमें रखा जाना चाहिए -- आतंकित कर देता है। माननीय श्री कामतके इस प्रस्तावको कि "कृषि विभाग" के विशेषज्ञको यह पता लगाना चाहिए कि फसल कितने आने हुई है, अव्यावहारिक कहा गया है। सरकार अपने ही हठपर अड़ी है और कोई प्रमाण जुटाये बिना ही पाठकोंसे इस अतिशय व्यावहारिक सुझावको पूर्णतः अव्यावहारिक मान लेनेको कहती है। माननीय श्री इस कामके लिए एक अपेक्षाकृत स्वतन्त्र -- फिर भी सरकारी ही :- अभिकरणका सुझाव दिया, बजाय एक ऐसे सरकारी अभिकरणके जिसके स्वार्थ इस कामके साथ जुड़े हुए हों; अर्थात् जिसमें सर्किल इंस्पेक्टर और निचली श्रेणीके अन्य वे अधिकारी शामिल हैं जिनकी तरक्की केवल इसी योग्यतापर निर्भर करती है कि वे “अत्याचारपूर्ण तरीके अपनाकर भी लगानकी पूरी-पूरी वसूली करके दिखायें। सर शंकरन नायरकी "तथ्यों और नीति- सम्बन्धी गलतफ़हमी" को और अधिक प्रमाणित करनेकी दृष्टिसे सरकारने इस बातके लिए उनकी आलोचना की है कि उन्होंने मेरे द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यको स्वीकार कर लिया है, जो "ऐसे खेतिहरोंके कथनपर ही आधारित है जिनके स्वार्थ उससे सम्बद्ध हैं।" चूंकि टिप्पणी तैयार करनेवाले अपने-आपको मालगुजारी विभागकी गहरी जानकारी रखनेवाला विशेषज्ञ मानते हैं इसलिए इस अंशके बारेमें कुछ कहना मुझे कठिन जान पड़ता है। मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि अधीनस्थ अधिकारियोंने उनको ठीक जानकारी नहीं दी। यदि उन खेतिहरोंके स्वार्थ, जिनके कथन मैंने स्वीकार किये हैं, इससे जुड़े हुए हैं तो जैसा मैं पहले दिखा चुका हूँ, सर्किल इंस्पेक्टरोंके स्वार्थ उनसे भी कहीं ज्यादा, एक उलटी ही दिशामें जुड़े हुए हैं। और फिर टिप्पणी में यह उल्लेख नहीं किया गया कि मैंने सम्बद्ध स्वार्थवाले खेतिहरोंकी गवाहीको आँख मूंदकर स्वीकार नहीं किया है, बल्कि उनके कथनोंकी जाँच भी की है और कुछ मामलोंमें जहाँतक हो सका स्वयं भी देखा, और हर मामलेमें ऐसे सम्मानित लोगोंके साक्ष्यसे उसका मिलान किया जो अपने हितोंकी खातिर लगान वसूली मुल्तवी कराने में दिलचस्पी नहीं रखते थे। इस प्रकार, मैंने इसके लिए तिहरी कसौटी रखी थी और मैं निवेदन करता हूँ कि जब हजारों मामलोंमें हजारों स्त्री-पुरुषोंने एक ही बात कही तो [ मेरे लिए ] उस साक्ष्यपर सन्देह करना असम्भव हो गया। और सरकारने अपने सम्बद्ध अधिकारियोंके कथनोंको बल देने और उसके फलस्वरूप किसानोंसे लगान वसूली करनेके लिए खेड़ाके सम्बद्ध किसानोंके