पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस प्रकार अन्त तो शोभनीय नहीं ही हुआ, लेकिन अब जो सरकार, लोगोंको इस तरह आखिरी बूंदतक चूसनेकी अपनी सफलतापर, बार-बार अपने मुँह अपनी झूठी बड़ाई किये चली जा रही है, उससे उसका यह कार्य एक जघन्य भूल भी बन जाता है। सरकारकी टिप्पणीमें सर शंकरन नायरके इस कथनका कोई उत्तर नहीं दिया गया कि वर्तमान सरकारकी प्रवृत्ति जड़ नियमोंसे कुछ इतना बँधकर चलनेकी है कि उसमें भावना और दयाकी कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती; फलतः यह शासनप्रणाली अत्याचारपूर्ण हो गई है; और इस अनिच्छुक नौकरशाहीसे न्याय तो आम तौरपर लगातार आन्दोलन करके जबरदस्ती ही प्राप्त किया जा सकता है; और यह आन्दोलन शिक्षित वर्गके बेचारे बदनाम लोगोंके द्वारा मुख्यतः वार्षिक सभा- समितियों आदि के माध्यम से संचालित होता है।

अगले अंक में हमें चम्पारनके सम्बन्धमें[१] भी कुछ कहना पड़ेगा, हालाँकि उस दुःखद घटनाका स्मरण ताजा करनेकी मेरी इच्छा नहीं होती। लेकिन सरकारने जो असाधारण रुख अपना रखा है, उसके कारण ऐसा करना मेरा कर्त्तव्य हो जाता है, क्योंकि अपने सहयोगियोंके अलावा मैं ही एक ऐसा व्यक्ति हूँ, जो जनताके सामने ये सारे तथ्य पेश कर सकता है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १६-८-१९१९

२५. क्या करें ?

देश के सम्मानका जरा भी ध्यान रखनेवाले प्रत्येक व्यक्तिके सामने यह साफ है या साफ होना चाहिए कि रौलट अधिनियम सारे देशके विरोधको देखते हुए रद किया ही जाना चाहिए। जैसा कि मैं बार-बार कह चुका हूँ इस कानूनका रद कराना सुधार विधेयक पास होनेसे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इसे रद कराना हमारे लिये संसदीय संविधिके बिना, स्व-शासन चलानेकी दिशामें एक पदार्थपाठ होगा। इस कानून- को हमें अनुशासनपूर्ण आन्दोलन द्वारा अवश्य रद करवाना चाहिए। अनुशासनपूर्ण आन्दोलन क्या है? यदि उसका अर्थ सभाएँ करना, प्रस्ताव पास करना और प्रार्थना- पत्रोंके मसविदे आदि तैयार करना है, तो यह दलील कि यह सब तो हम पहले ही काफी कर चुके हैं, लचर नहीं होगी। परन्तु सरकारोंकी याददाश्त बहुत कम होती है। यदि सभाएँ न की जायें और प्रस्ताव पास न हों तो काफी अधिकारी ऐसे निकलेंगे जो कहेंगे कि जनता रौलट कानून रद नहीं कराना चाहती और न उसे इसकी परवाह ही है। यद्यपि यह बात सभी जानते हैं कि हॉर्निमैन के निष्कासनपर हम लोग जान-बूझकर मौन इसलिए साधे रहे कि पुनः शान्ति और सन्तुलन स्थापित हो सके, तथापि जिम्मेदार लोगों में भी ऐसे लोगोंकी कमी नहीं है, जो उसका अर्थ यह लगाते हैं कि लोगोंने अधिकारियोंके दमनके सामने झुककर निष्कासनके विरुद्ध आवाज नहीं उठाई।

  1. देखिए “सर शंकरन नायर और चम्पारन, २७-८-१९१९