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क्या करें ?

यह तो निश्चित ही है कि गम्भीर और निरन्तर प्रयत्नके बिना कानून रद होने- वाला नहीं है, किन्तु उसका रद होना है निश्चित। इस बातपर पूर्ण विश्वास करनेका मेरा आधार यह है कि देशमें [ उसके खिलाफ ] बड़ा ही गम्भीर और प्रबल आन्दोलन चलता ही रहेगा। और यह भी कि यह अधिनियम जनताके स्वतन्त्र विकासके लिए हानिकारक है। समूची जनता रौलट अधिनियम-जैसे एक कानूनके आतंकसे त्रस्त बनी रहे, उसके बजाय तो मैं क्रान्तिकारी किस्मकी इक्की दुक्की अपराधपूर्ण कार्रवाइयोंकी बात सोचने में शायद कुछ कम मानसिक अशान्ति महसूस करूँगा। यह कानून मूल रोगको तो बिलकुल छोड़ देता है और उसके लक्षणोंका शमन करनेकी कोशिश करता है। यह पुलिस और प्रशासकोंको मनमानी करने और इसलिए उनके दायित्वके बोधको शिथिल करनेवाली, उन्हें भ्रष्ट करनेवाली ताकतोंसे लैस कर देता है। असाधारण शक्तियोंकी माँग करनेवाली प्रशासन-सत्ताको ज्यादातर अविश्वसनीय समझा ही जाना चाहिए। असाधारण अधिकारोंकी माँग वही करते हैं जो किसी बुराईको दूर करनेकी अपनी अक्षमता और अयोग्यतापर परदा डालना चाहते हैं। यह ठीक इसी प्रकारकी बात है कि जहाँ कुशल हाथोंसे लगाया गया एक हलका नश्तर ही पर्याप्त हो वहाँ एक अनाड़ी शल्य चिकित्सक छुरेका प्रयोग करना चाहे। अप्रैलमें पंजाब सरकारने जैसे काम किये थे अक्सर अधिकारियों द्वारा किए गये ऐसे ही गलत कामोंको छिपानेके लिए असाधारण अधिकार माँगे जाते। यदि केन्द्रीय सरकार पंजाब सरकारसे साधारण उपायों द्वारा ही स्थिति सँभालनेको कहती तो इतिहास दूसरे ही ढंगसे लिखा जाता। कहा जाता है कि कमसे कम दो जगहोंपर तो गवर्नरने पुलिससे यह कहा ही था कि यदि उनके अधिकार क्षेत्रमें कोई उपद्रव हुए तो वे उत्तरदायी ठहराये जायेंगे। तब जैसा कि मैं मानता हूँ रौलट कानून हर तरहसे बुरा है और कोई भी बुरी चीज सच्चे प्रयत्नके आगे नहीं टिक सकती, मुझे इस विषय में कोई सन्देह नहीं कि कानून अवधिसे बहुत पहले ही रद हो जायेगा। किन्तु [ कानूनके ] स्थगनकी अवधि में सभाएँ करना, प्रार्थनापत्र तैयार करना और प्रस्ताव पास करना सच्चा प्रयत्न है। जिन नेताओंने मुझे सविनय अवज्ञा स्थगित करनेकी सलाह दी है मैं समादरपूर्वक उनसे अपना कर्तव्य करनेकी प्रार्थना करता हूँ। सर नारायण चन्दावरकरने तो यह भी कहा है कि लोगोंके लिए सविनय अवज्ञाके अलावा अन्य तरीके अपनानेके रास्ते भी खुले हैं। क्या वे और अन्य नेतागण नेतृत्वके लिए आगे आयेंगे? मेरा सुझाव है कि उन्हें अपने कामके साथ-साथ 'कांग्रेस-लीग स्कीम मेमोरियल'[१] की तरहके एक प्रार्थनापत्रपर हजारों लोगोंके दस्तखत कराने चाहिए। जैसा कि स्वर्गीय श्री रानडे कहा करते थे, ऐसे प्रार्थनापत्रोंका शैक्षणिक महत्त्व भी होता है; वे किसी समस्याकी ओर जनताका ध्यान आकर्षित करनेमें काफी उपयोगी होते हैं। इसके अलावा, जब सविनय अवज्ञा शुरू की गई थी तब मुझसे कहा गया था कि उसके लिए ठीक समय नहीं है, जनताने सबके सब सुलभ तरीके अभी प्रयुक्त करके नहीं देखे हैं। मैंने कहा कि हम वह सब कर चुके हैं। मैंने जिस कार्यक्रमका सुझाव दिया है उसे अपनानेसे यदि दुर्भाग्यवश सविनय अवज्ञा फिर

  1. देखिए खण्ड १४, परिशिष्ट १