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२७. पत्र : सी० रॉबर्ट्सको

सत्याग्रह आश्रम

अहमदाबाद

अगस्त १७, १९१९

प्रिय श्री रॉबर्ट्स[१],

मैं यह पत्र श्री मॉण्टेग्युको न लिखकर आपको लिख रहा हूँ क्योंकि मैं उन्हें परेशान नहीं करना चाहता। एक तो इसलिए कि वे पहले ही अन्य परेशानियोंके बोझ से दबे हैं और दूसरे जितनी अच्छी तरह आपसे परिचित होनेका सौभाग्य मुझे प्राप्त है मैं उनसे उतनी अच्छी तरह परिचित नहीं हूँ।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः शुरू करनेके पहले, मुझे लगा कि श्री मॉण्टेग्युको एक व्यक्तिगत तार भेजना चाहिए जो मैंने भेजा भी।[२] इस सम्बन्धमें मैंने उन्हें पत्र[३] भी लिखा था। तारका गोपनीय उत्तर उन्होंने बम्बईके गवर्नरकी मार्फत भेजा था। उस उत्तरमें मुझसे सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः शुरू न करनेका आग्रह करते हुए कहा गया था कि उसे शुरू करना मेरी भूल थी और अब फिर शुरू करना तो अपराध होगा। उसमें यह भी लिखा था कि मुझे समझ लेना चाहिए कि कानून न तो रद होगा और न वापस लिया जायेगा। जहाँतक इस "अपराध" का सवाल है, यदि मैं उसे करनेपर मजबूर किया गया तो मैं उसे करूँगा; और तब निश्चय ही उसके नतीजे भी मैं भोगूँगा। मैं स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि मुझे आन्दोलन शुरू करनेका कोई खेद नहीं है। मेरा ऐसा पक्का विश्वास है कि अपराधपूर्ण विरोधका स्थान केवल सविनय अवज्ञा ही ले सकती है। आश्चर्य है कि श्री मॉण्टेग्यु इतने कल्पनाशील होते हुए भी सविनय अवज्ञा आन्दोलनकी निरपेक्ष प्रभावशीलताका सरल सौन्दर्य और उसकी आवश्यकता नहीं देख पाये। तथापि काल तो अपनी गति से चलता ही रहेगा और दिखा देगा कि अप्रैल में लोगोंने परिस्थितिवश जो हिंसात्मक कार्रवाई की थी, उसके लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन जिम्मेदार नहीं था। पंजाब में लोगोंको हिंसाके लिए विवश किया गया था। अहमदाबाद में लोग यह सोचकर पागल हो उठे थे कि जिस व्यक्तिने उनकी सेवाकी, उसे अकारण ही गिरफ्तार कर लिया गया। भारतके अन्य भागों में पूर्ण शान्ति रही। मैं अपनी गलती इसी हदतक मानता हूँ कि मैंने सरकार तथा जनता दोनोंमें व्याप्त बुराईकी शक्तियोंको कम आँका था।

जिस बातपर मुझे सबसे अधिक दुःख हुआ, वह श्री मॉण्टेग्युका यह संदेश है कि मुझे भली-भाँति समझ लेना चाहिए कि रौलट अधिनियम रद होनेवाला नहीं है।

  1. चार्ल्स रॉबर्ट्स; भारत उप-मन्त्री।
  2. देखिए खण्ड १५; पृष्ठ ३९९-४००
  3. वही; पृष्ठ ३७८-८०