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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अधिनियम के रद न होनेकी इस असंदिग्धताके बारेमें में कुछ नहीं जानता। मैं तो यह जानता हूँ कि इस कानूनको रद करवाने के लिए मैं अपना सर्वस्व दे दूंगा। इस कानूनकी कल्पना जनताके प्रति अशोभनीय अविश्वासके कारण की गई, भारतीय जनमतके व्यापक विरोधके बीच यह पेश किया गया और इसका पोषण हुआ दमनके बलपर। इसको निन्दनीय साबित करनेके लिए इतना ही पर्याप्त है। क्या श्री मॉण्टेग्यु अपने सुधारोंका उद्घाटन ऐसी जनताके बीच करना चाहते हैं जिसके स्वाभिमानको बुरी तरह ठोकर लगायी गयी है, जिसकी रायको ठुकरा दिया गया है और जिनमें से कई लोगोंको, गलत ढंगसे मुकदमे चलाकर, सजाएँ दी गई हैं? क्या उनके उदारतापूर्ण सुधारोंकी यह पृष्ठभूमि उपयुक्त है? क्या सुधारोंका सूत्रपात उक्त कानून रद करके ही नहीं करना चाहिए?

और रौलट कानून है क्या? यह शुरूसे आखिरतक एक ऐसा कानून है जो प्रजाकी स्वतंत्रता छीननेके लिए बनाया गया है; इसकी जरा भी जरूरत नहीं है। मानी हुई बात है कि क्रांतिकारी किस्मके अपराधका क्षेत्र इतना सीमित है (या था) कि उसके जवाब में रौलट कानून जैसा दमनकारी कानून थोपना जनताका अपमान करना है।

इसलिए में श्री मॉण्टेग्युकी चेतावनीकी ही शब्दावलीका सहारा लेकर कहना चाहूँगा कि भारतीय विरोधके बावजूद रौलट अधिनियम पास करना एक भूल थी, और विरोधके जारी रहनेके बावजूद उसे बनाये रखना अपराध है।

आप जब देखें कि [ श्री ] मॉण्टेग्युको इसे सुननेका अवकाश है, आप यह पत्र उन्हें सुना देनेकी कृपा करें।

लेडी सैसिलिया रॉबर्ट्सको कृपया मेरी याद दिलाइये और कहियेगा कि मैं और श्रीमती गांधी दोनों अक्सर कृतज्ञतापूर्वक उनके उस सौजन्यका स्मरण करते हैं जो उन्होंने १९१४[१] की मेरी बीमारीके समय दिखाया था।

हृदयसे आपका,

गांधीजी के स्वाक्षरों में अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६८०६) की फोटो - नकलसे।

  1. देखिए खण्ड १२