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२८. पत्र : इन्द्र विद्यालंकारको

मुंबई

श्रावण कृष्ण ६ [ अगस्त १७, १९१९]

भाई इंद्र,

मेरा दफतर साफ कर रहा हूं। उसमें तुमारा पत्र देखता हुँ। मेरा ख्याल है कि उसका उत्तर मैंने भेजा है। यदि न मीला हो तो लीखीये। मैं उत्तर भेजनेका प्रयत्न करूंगा।

मोहनदास गांधी

गांधीजी के स्वाक्षरों में मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ४८५६) की फोटो - नकल से।
सौजन्य : चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

२९. पत्र : 'टाइम्स ऑफ इंडिया'[१] को

बम्बई

अगस्त १८, १९१९

सम्पादक
'टाइम्स ऑफ इंडिया'
[ बम्बई ]
महोदय,

आपके दक्षिण आफ्रिकाके संवाददाताने आपके १८ तारीखके अंकमें जिस निष्पक्ष तरीकेसे ट्रान्सवालमें भारतीय स्थितिका सारांश दिया है, उसपर कोई भी आपत्ति उठाना सम्भव नहीं है। प्रश्नके दोनों ही पक्ष उसने यथासम्भव ईमानदारीसे पेश किये हैं।

दक्षिण आफ्रिका यूरोपीय उपनिवेशवादियोंको जो बात उत्तेजित बनाये रखती है वह यह नहीं है कि उन्हें आफ्रिकाके "काले लोगोंके साथ-साथ खाकी लोगों [ भारतीयों ] का अतिरिक्त भार" भी वहन करना पड़ रहा है, बल्कि पूरी समस्याका जैसा कि आपके संवाददाताने लिखा है, यह है "कि भारतीयोंके रहते दक्षिण आफ्रिकाको आर्थिक रूपसे आत्मनिर्भर नहीं बनाया जा सकता और जिस गोरी जातिने दक्षिण आफ्रिकाको बनाया है उससे इस बातकी आशा नहीं की जा सकती कि वह एक जातिके रूपमें आत्महत्या कर ले।" यह समस्या फेल्ट में रहनेवाले बोअर लोगोंकी

  1. यह २०-८-१९१९ के यंग इंडिया तथा २२-८-१९१९ के हिन्दू और न्यू इंडियामें उद्धृत किया गया था।