पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं है; उनके लिए तो भारतीय व्यापारी वरदान स्वरूप हैं। न यह ट्रान्सवालके बड़े नगरोंमें रहनेवाली यूरोपीय गृहिणियोंकी समस्या है; वे अपने दरवाजेपर आकर सब्जी दे जानेवाले भारतीयपर पूरी तरह निर्भर हैं। यह समस्या तो, जैसा कि आपके संवाददाताने लिखा है, उस खुदरा यूरोपीय व्यापारीकी है जो किफायती उद्योगशील भारतीयको एक दुर्जय प्रतिद्वन्द्वीके रूपमें देखता है; और यूरोपीय व्यापारीके पास मतदानका अधिकार है, जो काफी महत्त्वपूर्ण बात है; और वह शासक जातिका सदस्य है। इसलिए अपने प्रभावके बलपर अपनी इस आर्थिक समस्याको उसने समस्त दक्षिण आफ्रिकाकी जातीय समस्याका रूप दे दिया है। वास्तवमें समस्या यह है कि क्या खुदरा व्यापारियोंको अपने स्वार्थपूर्ण उद्देश्यकी पूर्ति के लिए न्याय, औचित्य, निष्पक्ष नीति और उन सभी विचारोंको धता बतलानेकी अनुमति दी जानी चाहिए जो राष्ट्रको नेक और महान् बनाते हैं।

भारतीयोंको धीरे-धीरे परन्तु निश्चित तौरपर दक्षिण आफ्रिकासे बाहर निकाल फेंकनेकी प्रक्रियाके समर्थन में तथाकथित स्मट्स-गांधी समझौतेको आधार बनाया गया है। वह समझौता दों, और केवल दो ही पत्रोंमें[१] निहित है, जो ३० जून, १९१४ को लिखे गये थे; इनमें से पहला जनरल स्मट्सकी ओरसे गृहसचिव श्री जॉर्जेसने मुझे लिखा था और दूसरा उसी तारीखको उसी पत्रकी मेरी प्राप्ति-स्वीकृति है। जैसा कि पत्रोंसे सर्वथा स्पष्ट हो जाता है, समझौता सविनय अवज्ञा, जिसे पत्र-व्यवहारमें निष्क्रिय प्रतिरोध कहा गया है, के विषय से सम्बन्धित प्रश्नोंके बारेमें है। समझौते में वर्तमान अधिकारोंका क्षेत्र बढ़ाने की बात है, उसे प्रतिबन्धित करनेकी कदापि नहीं। और चूँकि समझौतेका उद्देश्य केवल सविनय अवज्ञासे उठनेवाले मसलोंपर ही विचार करनेका था, अन्य प्रश्न जैसे-तैसे छोड़ दिये गये थे। ३० जूनके मेरे पत्रमें उसकी सीमा निर्धारित कर दी गई है; कहा गया है :-

जैसा कि मन्त्री महोदयको मालूम है, मेरे कतिपय देशभाई चाहते थे कि मैं इससे अधिक अधिकारोंकी माँग करूँ। वे इस बातसे असन्तुष्ट हैं कि विभिन्न प्रान्तोंके व्यापार परवाना कानूनों, ट्रान्सवाल स्वर्ण-कानून, ट्रान्सवाल कस्बा कानून तथा १८८५ का ट्रान्सवाल कानून संख्या ३ में ऐसे परिवर्तन नहीं किये गये जिनसे कि भारतीयोंको अधिवास, व्यापार तथा जमीनके स्वामित्वके पूर्ण अधिकार मिलते। कुछ लोग इसलिए असन्तुष्ट हैं कि पूर्ण अन्तर्प्रान्तीय आवागमनकी अनुमति नहीं दी गई, और कुछ इसलिए असन्तुष्ट हैं कि विवाहके सवालपर राहत विधेयक जिस हदतक जाता है उससे आगे क्यों नहीं गया।

इस पत्र-व्यवहारमें भारतीय अधिवासियोंको व्यापार परवाने न मिलनेके बारेमें या खानोंके अथवा अन्य किसी क्षेत्रमें उनके अचल सम्पत्ति न रख सकनेके बारेमें एक भी शब्द नहीं। भारतीयोंको पहले चाहे जितने व्यापार परवानों और अचल सम्पत्तिके लिए प्रार्थनापत्र देने और हासिल कर सकनेका पूरा-पूरा अधिकार था। यह अचल सम्पत्ति पंजीयित कम्पनियां बनाकर अथवा बन्धकों द्वारा हासिल की जा सकती थी।

  1. देखिए खण्ड १२, पृष्ठ ४२९-३० और परिशिष्ट २६