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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यदि कानून-भंगकी कोई बात होती तो उनके व्यापारी प्रतिद्वंद्वियोंने उनकी कभी की गत बना दी होती। अन्तमें यदि मान भी लें कि कानून भारतीय दावेके प्रतिकूल था, तो भी मेरी परिभाषाका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता था कि उससे कानून में संशोधनकी बात उठानेपर प्रतिबन्ध लग जाता है; क्योंकि पूरा समझौता ही अपने स्वरूपमें एक अस्थायी प्रकारका समझौता था। मैंने अपने ३० जूनके पत्रमें निश्चित रूपसे कहा था, "भारतीय तबतक चुप नहीं बैठ सकते जबतक उन्हें पूरे नागरिक अधिकार नहीं मिल जाते।" अतएव मैं तो कहूँगा कि विश्वासभंगकी बात कहना बिलकुल बेईमानी और बेहयाईसे भरी हुई चाल है। ऐसी चालोंको इस प्रश्नके उचित हलमें आड़े नहीं आने देना चाहिए।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

टाइम्स ऑफ इंडिया, १९-८-१९१९

३०. पत्र : एन० पी० कॉवीको[१]

लैबर्नम रोड

गामदेवी

बम्बई

अगस्त १९, १९१९

प्रिय श्री कॉवी,

समाचारपत्रों से विदित होता है कि कल महामहिम बम्बई में होंगे। पिछली बार जब मुझे उनसे मिलनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था, उन्होंने मुझे बताया था कि वे मुझे फिर भेंटका अवसर देंगे और इस बार स्वदेशीपर बातचीत होगी। अतएव यह पत्र केवल महामहिमको स्मरण दिलाने के लिए है। मैं अगले शुक्रवारतक बम्बईमें हूँ और यदि बना तो मैं पूरे अगले हफ्ते बाहर रहना चाहता हूँ। तथापि यह तो है ही कि मैं अपना कार्यक्रम महामहिमकी सुविधानुसार बनाऊँगा। इसलिए अगर मुझे बम्बई छोड़ने से पहले मुलाकातका समय सूचित कर सकें तो मैं बहुत आभारी होऊँगा।[२]

हृदयसे आपका,

हस्तलिखित अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६८१५) की फोटो नकलसे।

  1. बम्बई के गवर्नर सर जॉर्ज लॉयडके निजी सचिव।
  2. कॉवीने २२ अगस्तको लिखे अपने पत्रमें उत्तर दिया था कि गवर्नर आवास सम्बन्धी एक सम्मेलनमें व्यस्त हैं, तथापि सम्भव हुआ तो बम्बई से रवाना होनेके पूर्व गांधीजीसे भेंट करेंगे।