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३१. एक और कलंक

मेरा यह अरुचिकर कर्तव्य है कि मैं पाठकोंके सामने पंजाबके ऐसे कुछ और भी मामले पेश करूँ जिनसे पता चलता है कि वहाँ स्थिति सर्वथा असहनीय हो गई है। हम कामना करते हैं कि महामहिम वाइसराय अपने वायदेके अनुसार तुरन्त जाँच- समिति नियुक्त करके यह निरन्तर बढ़ती हुई चिन्ता दूर करेंगे। श्री मॉण्टेग्युने हाउस ऑफ कॉमन्स में घोषित किया था कि पंजाबके विशेष न्यायाधिकरणोंके तीन न्यायाधीशोंमें से दो तो ऐसे हैं ही जिन्हें उच्च न्यायालयका तीन वर्षका अनुभव है। और जनताको अभी हाल में यह बतलाया गया है कि न्यायाधिकरणके जो सदस्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश नहीं रहे वे भी उस ऊँचे पदके योग्य हैं। जिन नृशंस अन्यायोंका पर्दाफाश करनेका कष्टकर कर्त्तव्य मुझे निभाना पड़ा है, उसके दुःखकी तीव्रता यह जानकर और भी बढ़ गई है कि इन अन्यायोंको थोपनेवाले लोग वे ही न्यायाधीश हैं, जिनके निर्णयोंपर पूरा भरोसा करनेका जनताको अभ्यास हो गया है। स्वभावमें इस वैषम्यकी उत्पत्तिका कारण यही माना जा सकता है कि पंजाबकी घटनाओंने न्यायाधीशोंकी प्रशिक्षित न्यायिक बुद्धि- को भी थोड़े समयके लिए चकरा दिया होगा। लगता है कि न्यायाधीशोंके दिमागपर यह एक ही आक्रोश छाया हुआ था कि अंग्रेजोंको 'नेटिव' फिर कभी कोई शारीरिक क्षति पहुँचानेकी हिम्मत न कर सकें इसलिए उनको कोई ऐसा दण्ड देना चाहिए जो उन्हें सदा याद रहे। इस आक्रोशने उनके विवेक, उनकी बुद्धि और न्याय- भावनाको आच्छादित कर दिया था। मैंने जिन फैसलोंको देखा है, उनको अन्य कुछ मानकर चलनेपर समझ पाना मेरे लिए तो सम्भव नहीं। ये विचार हाफिजाबादके मुकदमे से सम्बन्धित फैसले और सबूतको ध्यानपूर्वक देखनेपर उठे हैं। मुकदमेके फैसलेका पूरा पाठ और जिरह के लिए पेश सबूतकी सामग्री इस अंक में अन्यत्र प्रकाशित की जा रही है। अपनी वकालत के पूरे अर्सेमें, जो कम नहीं है- मैंने लगातार करीब बीस साल वकालत की है, मैंने कभी ऐसे मुकदमे नहीं देखे जिनमें हाफिजाबादके मुकदमेकी तरह इतनी गैर-संजीदगी और इतने बेहद कमजोर सबूत के आधारपर फाँसीको सजायें सुना दी गई हों।

जिन उन्नीस अभियुक्तों की सुनवाई हुई थी उनमें से केवल उन्नीसवें अभियुक्त करमचन्द, दयानन्द ऐंग्लो वैदिक कॉलेजके एक विद्यार्थीका मामला मेरे पास भेजा गया है। परन्तु मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं कि अदालत के सामने ऐसा एक भी सबूत नहीं आया जिससे किसी भी अभियुक्तपर युद्ध छेड़नेका जुर्म लगाया जा सके। अभियुक्तों पर कई अभियोग लगाये गये थे और न्यायाधीश चाहते तो अन्य अभियोगों- की भी सजा दे सकते थे। अभियुक्तोंपर भारतीय दंड संहिताकी धारा १२१, १४७, ३०७, ४८६ (?) और १४९ के अधीन अभियोग लगाये गये थे। धारा १४७ दंगा करनेसे सम्बद्ध है और उसके अन्तर्गत अधिकसे-अधिक दो सालका दंड दिया जा सकता है। धारा १४९ में गैर-कानूनी सभाओं में शामिल होनेवाले सभी लोगोंके लिए समान दण्डकी

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