पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यवस्था है। धारा ३०७ कत्ल करनेकी कोशिशसे सम्बद्ध है, और उसका अधिकतम दण्ड दस वर्षका है। इस मामलेमें धारा ४८६ तो बेमतलब ही दूसरे मुकदमोंकी नकल करते हुए लगा दी गई है, जिसका अदालतके सामने पेश किये गये सबूत से कोई वास्ता नहीं। इस प्रकार यदि न्यायाधीश चाहते तो किसी कम सख्त धाराके अन्तर्गत लगे अभियोगको लेकर भी सजा सुना सकते थे। पर उनको तो अप्रैलके उन तीन-चार दिनोंके दौरान भीड़ द्वारा किये गये प्रत्येक कार्यसे युद्धकी ही बू आ रही थी।

अतएव जहाँ मेरे सामने यह स्पष्ट है - और मुझे आशा है कि मुकदमेके प्रत्येक निष्पक्ष पाठकके सामने भी स्पष्ट होगा - कि सम्राट्के विरुद्ध युद्ध छेड़नेका अभियोग साक्ष्य के अभाव में सिद्ध नहीं किया जा सकता और छोटे-छोटे अन्य अभियोगोंके आधारपर उनके मुकदमोंके बारेमें एक निश्चित राय बना पाना कठिन है। जो भी हो, मैं अपने मनका यह बहुत गहरा संदेह अपने-आपसे और पाठकोंसे नहीं छिपा सकता कि सबूत के पूरे पाठमें[१] भी शायद ऐसी कोई चीज नहीं मिलेगी जिसके आधारपर न्यायाधीश यह कह सकते हों कि वक्ताओंने भीड़को इस बात के लिए उत्तेजित किया कि वह अधिक से अधिक विद्रोह करके सरकारको उलटनेके लिए तत्काल कारगर कदम उठाये। अप्रैलके उन दिनों में मैंने कहीं भी सरकारको उलटनेका कोई प्रयत्न नहीं देखा।

परन्तु मुझे सिर्फ करमचन्द के मुकदमेके बारेमें ही कहना चाहिए। फैसलेमें उसके बारेमें कुल इतना कहा गया है:

मुजरिम नं० १९, करमचन्द विशेषरूपसे अपराधी था। वह लाहौरके दंगोंकी खबर लेकर वहाँ आया। उसने दंगोंका हाल बहुत ही बढ़ा-चढ़ाकर बतलाया और यह जताकर कि लाहौरकी भीड़ फौजको भी पराजित करनेमें सफल हो गई थी, उसने हाफिजाबादकी भीड़को यह विश्वास दिलाया था कि उनकी बगावत सफल होगी।

न्यायाधीश आगे कहते हैं कि "हमारा खयाल है कि ये चार आदमी अधिकतम दंड पानेके योग्य हैं।" अधिकतम दंडमें जो तीन अन्य आदमी उसके साथ रखे गये हैं, वे खुद लेफ्टिनेंट टैटमपर हमला करनेवाले माने गये हैं। परन्तु करमचन्द हमलावरोंमें से नहीं था, यह फैसलेके उद्धृत अंशसे भी जाहिर होता है।

अभियुक्तके खिलाफ पेश किये गये सबूतकी भी हमें जाँच करनी चाहिए। अभियोग पक्षके दो गवाहोंने जो लेफ्टिनेंट टैटमको ले जानेवाली गाड़ीमें थे, केवल शिनाख्तीके सबूत दिये गये हैं। वे यह कहने में असमर्थ हैं कि करमचन्दने खुद भी कुछ किया था। अभियोग पक्षको गवाह नम्बर ५ ने १७ अप्रैलके १८ या २० दिन बाद पहले-पहल करमचन्दकी शिनाख्त की थी। गवाह नम्बर ६ ने उक्त तारीखके दस या बारह दिन बाद उसकी शिनाख्त की थी। यह मान्य तथ्य है कि दोनों ही गवाह करमचन्दके लिए बिलकुल अपरिचित थे। करमचन्दके विरुद्ध अभियोगकी मुख्य बात यह नहीं कि उसने १४ अप्रैलको कुछ किया वरन् यह कि वह ११ अप्रैलको लाहौर से कुछ समाचार

  1. सबूतका पाठ करमचन्दके पिताने गांधीजीको भेजा था। देखिए "पत्र : ईशरदास खन्नाको", २०-८-१९१९