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एक और कलंक


लाया। डी० ए० वी० स्कूलके हेडमास्टरने कुल इतना ही बयान करमचन्दके बारेमें दिया था :--

करमचन्द लाहौरके डी० ए० वी० कॉलेजका एक विद्यार्थी है। मैंने उसे ११की शामको देखा। वह लाहौरके दंगोंके बारेमें बात कर रहा था कि लाहौरी गेटके पास लोगोंपर मशीनगनोंकी गोलियाँ बरस रही हैं परन्तु वे पीछे नहीं हट रहे हैं।

(मैंने यह वाक्य ठीक वैसा का वैसा ही ले लिया है जैसा मेरे सामने की प्रतिमें हैं)

वह और भी कुछ कहने जा रहा था परन्तु मैंने उसे रोका। मैंने उसे सलाह दी कि हाफिज़ाबादमें ऐसी बातें कहना अच्छा नहीं। वह मेरा पुराना शिष्य था। ६ या ७ लोग मौजूद थे। यह बात शहरसे बाहर एक फुटपाथकी है। वह उत्तेजित था । मैं १२ तारीखको वहाँसे चला आया।
जिरह-- अभियुक्त हाफिजाबादका नहीं है। जब मैंने चेतावनी दी तो वह चला गया। मैंने उससे पूछा नहीं कि लाहौरमें क्या हुआ था।

अभियोग पक्षके गवाह नम्बर २७ने जो बयान दिया, वह हेडमास्टरके बयानकी पुष्टि करता था। करमचन्द के विरुद्ध कुल इतना ही सबूत है। यह दिनके उजालेकी तरह साफ है कि करमचन्द द्वारा लाहोरके दंगोंके बारेमें कथित चर्चा ११ तारीखको हुई थी और वह शहरके बाहर एक फुटपाथपर ६ या ७ लोगोंके सामने बोल रहा था और जैसे ही उसके पुराने स्कूलमास्टरने रोका वह चुप होकर चला गया; और यह भी स्पष्ट है कि वह हाफिज़ाबादका नहीं है। मेरा विचार है कि न्यायाधीशोंका उपर्युक्त गवाहीसे निकाला गया निष्कर्ष सर्वथा असंगत है। करमचन्द के बारेमें पेश पूरे सबूत में कुछ भी ऐसा नहीं जिससे प्रकट हो कि १४ तारीखको रेलवे स्टेशनके पासकी भीड़में वही ६-७ लोग थे जिनके सामने उसने ११ तारीखको शहरसे बाहर फुटपाथपर लाहोरके दंगों के बारेमें बातें की थीं। करमचन्द के मामलेमें न्यायाधीशोंको क्या विशेषता दिखलाई पड़ी, यह समझमें नहीं आता। यहाँ मैं यह भी लिख दूं कि हेडमास्टर और उनके जैसे बयान देनेवाले गवाह हमें १४ अप्रैलको करमचन्दकी कार्रवाइयों या वह कहाँ था इसके बारेमें कुछ भी जानकारी नहीं देते। इसलिए यदि करमचन्द १४ तारीखको स्टेशनपर मौजूद भी था, तो सबूतसे कोई इतना ही देख सकता है कि वह भीड़के कायरतापूर्ण आचरणका एक मूक दर्शक भर था। परन्तु करमचन्द कहता है कि वह वहाँ मौजूद नहीं था। वह बताता है कि १२ को वह अपने गाँव चला गया था। उसने ४ गवाह यह साबित करने के लिए पेश किये कि १४ अप्रैलको वह अपने गाँव उधोकीमें था। मैं यह कहना चाहूँगा कि करमचन्द और उसके गवाहोंके सच कहने की सम्भावना उतनी ही है जितनी कि उन दोनों अभियोग पक्षके गवाहों द्वारा करमचन्दको पहचानने में गलती करनेकी सम्भावना है; क्योंकि यहाँ यह तथ्य ध्यान में रखना होगा कि उन्होंने उसे पहले कभी नहीं देखा था और यह भी कि घटनाके १० या १८ दिन बाद उसकी शिनाख्त के लिए उन्हें जेल ले जाया गया था। और खास करके इसलिए भी