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३२. पत्र : 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को[१]

लैबर्नम रोड

बम्बई

अगस्त २०, १९१९

सम्पादक,
'टाइम्स ऑफ इंडिया'
महोदय,

'पेनसिलवेनियन' ने आपके पत्र द्वारा मुझे सद्भावपूर्ण सलाह दी है। आशा है आप मुझे उसका उत्तर देनेकी अनुमति देंगे। मैं जानता हूँ कि 'पेनसिलवेनियन' के जैसे विचार हैं, वैसे ही विचार बहुतसे अंग्रेज ईमानदारीसे रखते हैं। सत्याग्रहके बारेमें कुछ गलतफहमियाँ फैली हुई हैं, उन्हें दूर करनेका मौका देनेके लिए मैं उनको धन्यवाद देता हूँ।

'पेनसिलवेनियन' अपने यशस्वी देशबन्धु अब्राहम लिंकनके उदाहरणका अनुसरण करनेके लिए मुझसे कहते हैं। उनकी एक उक्ति यह है कि

हमें विश्वास रखना चाहिए कि सत्याचरणसे ही बल पैदा होता है और हमें इसी विश्वाससे जीवनके अन्ततक अपनी समझके अनुसार अपने कर्त्तव्य पूरे करते रहना चाहिए।[२]

मैंने अपने जीवनमें अपनी शक्ति-भर इस वचनको कार्यान्वित करनेका सदा प्रयत्न किया है।

'पेनसिलवेनियन' का 'नैतिक क्रान्ति' का आग्रह करना वाजिब है। सत्याग्रह उसके सिवा और कुछ नहीं है। सविनय अवज्ञा उसका केवल एक भाग है, यद्यपि वह एक आवश्यक भाग है। सत्याग्रहका शब्दार्थ है 'किसी भी मूल्यपर सत्यका आग्रह।' जिन्होंने आजीवन सत्याग्रही रहनेका व्रत लिया है वे सत्य, अहिंसा, गरीबी और ब्रह्मचर्यका सम्पूर्ण पालन करनेके लिए प्रतिज्ञाबद्ध हैं। 'पेनसिलवेनियन' ने जो कार्यक्रम बताया है, वह लगभग सारा अमल में लानेका जहाँ प्रयत्न किया जा रहा हो, ऐसी एक संस्था इस समय मौजूद है।[३] अंग्रेज और अमरीकी मित्र उसे देख चुके हैं। 'पेनसिलवेनियन' को भी मैं उसे देखने और उसके बारेमें सार्वजनिक विवरण देनेके लिए आमन्त्रित करता हूँ।

  1. गांधीजीने यह पत्र 'पेनसिलवेनियन' द्वारा कुछ दिन पहले टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे एक खुले पत्रके उत्तरमें लिखा था, जिसमें लेखकने गांधीजीसे अनुरोध किया था कि वे सामाजिक शिक्षा और आर्थिक सुधारोंके निरन्तर प्रचारके माध्यमसे समाजके उत्थानके प्रयत्नोंपर ही जोर दें । यह पत्र २३-८-१९१९ के यंग इंडिया और न्यू इंडिया में भी प्रकाशित हुआ था। देखिए परिशिष्ट ५
  2. लिंकन द्वारा २७ फरवरी, १८६० को कूपर इन्स्टीटयूटमें दिये गये भाषणसे उद्धृत।
  3. उल्लेख स्पष्ट ही गांधीजी द्वारा साबरमती में संस्थापित सत्याग्रह आश्रमका है।