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पत्र : ईशरदास खन्नाको

उस अमर लेखमें कहते हैं कि हिंसा नहीं, सविनय अवज्ञा ही सच्चा उपाय है। सविनय अवज्ञामें अवज्ञा करनेवाला अवज्ञाके परिणाम भुगत लेता है। ईरान और मीडियाके कानूनों की जब दानियालने अवज्ञा की, तब उसने यही किया था। जॉन बनियनने[१] भी यही किया था। हिन्दुस्तान में किसान परम्परासे ऐसा ही करते आये हैं। यही हमारा जीवन-धर्म है। हिंसा तो हमारे भीतर मौजूद पशुका धर्म है। स्वयं कष्ट उठाना अर्थात् सविनय अवज्ञा करना हमारे भीतर बसे हुए मनुष्यका धर्म है। सुव्यवस्थित राज्य में सविनय प्रतिकारका अवसर बहुत ही कम आता है। परन्तु अवसर उपस्थित हो जाये तो उसका प्रतिकार करना उन लोगोंका कर्त्तव्य हो जाता है, जो अपने स्वाभिमान या अपनी अन्तरात्माको ही सर्वोपरि समझते हैं। रौलट कानून एक ऐसा कानून है, जो हममें से हजारोंकी अन्तरात्माओंको मंजूर नहीं। इसलिए मेरा नम्रतापूर्वक यह सुझाव है कि अंग्रेज जनताको चाहिए कि वह मुझपर रौलट कानूनकी सविनय अवज्ञा न करनेके लिए दबाव डालनेके बजाय सरकारसे ही अपील करे कि राष्ट्रके स्वाभिमान- को आघात पहुँचानेवाले और ऐसे सर्वसम्मत लोकमतके विरोधके पात्र इस कानूनको वह रद कर दे।

आपका,

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

टाइम्स ऑफ इंडिया, २२ -८-१९१९

३३. पत्र : ईशरदास खन्नाको

लैबर्नम रोड बम्बई

अगस्त २०, १९१९

प्रिय महोदय,

आपका पत्र और उसके साथ आपके पुत्र करमचन्द के मुकदमेसे सम्बन्धित सबूत और फैसलेकी नकल मिली। कृपया माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नरको भेजे गये प्रार्थनापत्रकी नकल भी मेरे पास भेज दीजिए। आपका पुत्र १४ अप्रैलको हाफिज़ाबाद में नहीं था, आपने इस बयानकी पुष्टि करनेके लिए गवाही क्यों नहीं दी? कृपया मुझे सबूत के पूरे पाठकी प्रति भी भेज दीजिये। मुझे यह भी सूचित कीजिये कि जिन तीन अन्य व्यक्तियोंको फाँसीकी सजा सुनाई गई थी, उनका क्या हुआ।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६८१४) से।

  1. ( १६२८-१६८८ ); पिलग्रिम्स प्रोग्रेस तथा द होली वॉरके लेखक।