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३४. पत्र : लाला लाजपतरायको

अगस्त २०, १९१९

प्रिय लाला लाजपतराय,

आपका पत्र[१] पाकर बहुत प्रसन्नता हुई। इसे मैं इतना मूल्यवान समझता हूँ कि मैंने उसे प्रकाशित कर दिया है।[२] आपके विचारोंके बारेमें जो गलत धारणायें थीं उन्हें दूर करनेमें इससे मदद मिलती है। आपने पत्रपर हस्ताक्षर नहीं किये। मेरे खयालमें हस्ताक्षर भूलसे रह गये हैं। मैं चाहता हूँ कि यदि आप ठीक समझें तो अपने विचारोंको विस्तृतरूपमें लिखकर उन्हें प्रकाशित करनेके लिए दूसरा ब्यौरेवार पत्र[३] लिख भेजें। आप-जैसे आदमियोंको इस समय हिन्दुस्तान से बाहर रहना पड़ रहा है, यह मेरे लिए तो असह्य है।[४] मेरी रायमें तो हर सच्चे भारतीय का स्थान भारतमें ही है। सत्याग्रह के सिद्धान्तके लिए यानी हिंसा किये बिना विरोध करनेके लिए अधिकसे-अधिक शक्ति चाहिए। मेरी राय है कि इससे केवल हिन्दुस्तानके ही नहीं बल्कि दुनियाभरके प्रश्न हल हो जायेंगे।

'यंग इंडिया' तो आपको नियमित रूपसे मिलता ही रहता होगा।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

  1. देखिए परिशिष्ट ३
  2. देखिए "लाला लाजपतरायके पत्रपर टिप्पणी", १३-८-१९१९ के पूर्व।
  3. गांधीजीके अनुरोधपर लाला लाजपतरायने जो पत्र लिखे थे वे १२-११-१९१९, २६-११-१९१९ और १७-१२-१९१९ के यंग इंडियामें प्रकाशित हुए थे।
  4. सरकारने लाला लाजपतरायको उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण भारतसे निष्कासित कर दिया था। इन दिनों वे अमरीकामें थे और वहाँसे १९२० में भारत लौटे।