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३५. देवदास गांधीको लिखे पत्रका अंश

[ बम्बई ]

श्रावण बदी ९, [ अगस्त २०, १९१९]

लाला लाजपतरायका पत्र प्रकाशित होनेसे किसीके नाराज होनेका तो कोई कारण नहीं है। वह प्रकाशित होनेके लिए ही भेजा गया था। उससे उनकी कीर्ति बढ़ती है। फिर भी जो आलोचना हो, उसे हमें तो शान्तिसे ही सुनना है।

लालाजीका पत्र छापनेके लिए ही है। हरदयालके बारेमें [ उसमें ] जो कुछ लिखा गया है, वह प्रसिद्ध ही हैं। मनुष्य इतने डरपोक हो गये हैं कि वे अपनी परछाईंतक से डरते हैं। मैंने तो पत्र छापकर लालाजीके लिए भारत आनेका द्वार कुछ खोल दिया है। 'सत्याग्रह' थोड़े ही अर्से में केवल गुजराती शब्द नहीं रह जायेगा।

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ५

३६. पत्र : लल्लुभाई शामलदास मेहताको[१]

लैबर्नम रोड

गामदेवी, बम्बई

श्रावण बदी १०, १९७५ [ अगस्त २०, १९१९]

सुज्ञ भाईश्री,

मैंने अभीतक आपको किसी भी दिन कष्ट नहीं दिया, लेकिन आज दिये बिना काम नहीं चल सकता। आप भाई मणिलाल जादवजी व्यासके मामलेसे कदाचित् विलकुल अपरिचित नहीं हैं। ये राजकोट रियासतकी रैयत हैं। कराचीमें धन्धा करते थे। इन्होंने सत्याग्रह प्रतिज्ञापर अप्रैल अथवा मार्च महीने में हस्ताक्षर किये थे। मई मासमें कराचीके कमिश्नरने इन्हें १८६४के कानूनकी रूसे ब्रिटिश भारतसे निर्वासित किये जानेका आदेश दिया। उन्होंने मुझे पत्र लिखा तथा बम्बई सरकारसे अपील की। बम्बई सरकारने उपर्युक्त आदेशको बहाल रखा है। आप देखेंगे कि 'यंग इंडिया 'में सरकारके इस निर्णयकी आलोचना की गई है। आप 'यंग इंडिया' तो अवश्य पढ़ते होंगे। यदि आपको 'यंग इंडिया' की प्रति नहीं मिलती है तो लिखियेगा, मैं भिजवा दूंगा। इस सम्बन्धमें आप चाहें तो बहुत-कुछ कर सकते हैं; मैं चाहूँगा कि आप अवश्य कुछ करें।

मूल गुजराती पत्रकी हस्तलिखित प्रति (एस० एन० ६८१०) से।

  1. भावनगर रियासतके दीवान।