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पत्र : बम्बईके लोक-शिक्षा निदेशकको


गवर्नर-सम्बन्धी बात में अपने तक रखूंगा। वह बहुत अच्छी है; उसका प्रचार नहीं किया जा सकता। इसलिए उसके प्रचारका भय मत मानिये। ईश्वरेच्छा होगी तो आपकी भविष्यवाणी सच्ची निकलेगी।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

सौजन्य : नारायण देसाई

३९. पत्र : बम्बईके लोक-शिक्षा निदेशकको

बम्बई

अगस्त २१, १९१९

प्रिय महोदय,

मुझे पिछले सप्ताह गोधरा जाने और वहाँ स्टुअर्ट लाइब्रेरी देखनेका मौका मिला। मैंने देखा कि कुछ समाचारपत्रोंको पुस्तकालय में पढ़नेके लिए रखना अवांछनीय माना जाता है। मैं कहना चाहूँगा कि अवांछनीय समाचारपत्रोंकी सूची बनानेमें मनमानी की गई है। उदाहरणके लिए, मैं देखता हूँ कि 'यंग इंडिया' वहाँ निषिद्ध है। अब चूंकि आजकल यह पत्र विशेषरूप से मेरी देखरेखमें प्रकाशित हो रहा है, मैं निर्भीकतासे कहता हूँ कि यह एक ऐसा समाचारपत्र है जो बच्चेके भी हाथोंमें दिया जा सकता है। १९ जून, १९१७ को उसे निषिद्ध करार दिया गया। उस दिनके बादसे इसमें कई उतार- चढ़ाव आ चुके हैं। 'मराठा'[१] भी निषिद्ध है। यह बहुत समय से प्रतिष्ठित और पुराना अंग्रेजी साप्ताहिक है, जिसका भारतीय पाठक-वर्गमें बहुत प्रचार है। फिर 'गुजराती' भी गुजराती पत्रोंमें सबसे पुराना पत्र है। इन पत्रोंकी नीतिसे कोई भले ही सहमत न हो, परन्तु मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि पत्रकी नीतिके कारण उसे सार्वजनिक पुस्तकालयसे अलग रखना एक गंभीर बात है। मैंने सूचीमें से केवल थोडेसे उदाहरण सरसरी तौरपर चुन लिए हैं। जहाँतक मैं जानता हूँ उस सूचीका एक भी समाचारपत्र ऐसा नहीं है, जिसपर किसी भी उचित कारणसे आपत्तिकी जा सके। मेरी राय में यह मानकर कि पत्रोंका निर्वाचन होना चाहिए, यह मामला एक ऐसी पुस्तकालय समितिके हाथोंमें सौंप दिया जाये जिसका चुनाव स्थानीय निवासी करें और जिसमें आपका स्थानीय प्रतिनिधि पदेन सदस्य हो। इसमें यह साफ होना

  1. लोकमान्य तिलक द्वारा पूनामें संस्थापित दो पत्रोंमें से एक; वे इसके सम्पादक भी थे।