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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


चाहिए कि कोई समाचारपत्र या पुस्तक सिर्फ तभी निषिद्ध की जाये जब समितिकी रायमें नैतिकताको दृष्टिसे जनतापर उसका बुरा प्रभाव पड़ता हो। मैं विश्वास करता हूँ कि आप इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मामलेपर शीघ्र ही पूरी गम्भीरतासे विचार करेंगे।[१]

आपका विश्वस्त,

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १७-९-१९१९

४०. पत्र : पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर के निजी सचिवको

लैबर्नम रोड,

गामदेवी बम्बई

अगस्त २२, १९१९

सेवामें,
पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदय के
निजी सचिव
लाहौर
प्रिय महोदय,

कष्टकर होनेपर भी, कर्त्तव्यके नाते मुझे लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयका ध्यान एक और स्पष्ट मामलेमें न्यायकी त्रुटिकी ओर आकर्षित करना पड़ रहा है। में हाफिज़ाबाद जत्थेके एक अभियुक्त, करमचन्दके मामलेकी बात कर रहा हूँ। मुझे मालूम हुआ है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयने पहले उसके मृत्युदण्डको घटाकर दस वर्षका कारावास करने और फिर अन्तमें उसे भी घटाकर एक वर्षके कारावासमें बदल देनेकी कृपा की है, परन्तु सभी मानेंगे कि एक ऐसे मामलेमें जिसमें अभियुक्तके विरुद्ध कोई भी ठोस सबूत न हो अभियुक्तको पूरी तौरपर दोषमुक्त करके ही न्यायका मंशा पूरा किया जा सकता है, इससे कम किसी भी चीजसे वह पूरा नहीं हो सकता। मैं इसीलिए यह कहनेकी धृष्टता कर रहा हूँ कि इस मामलेपर एक बार फिर गौर किया जाये। मुझे भरोसा है कि पुनर्विचारके बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदय युवक करमचन्दकी रिहाई- का आदेश देनेकी कृपा करेंगे। में इसके साथ 'यंग इंडिया' की वह प्रति संलग्न कर रहा हूँ जिसमें करमचन्द के मामलेसे सम्बन्धित सबूत, फैसलेका पूरा पाठ और

  1. निदेशकने १३ सितम्बरको इस पत्रका उत्तर देते हुए गांधीजीको सूचित किया कि पत्रिकाओंके निषेव सम्बन्धी आदेशको वापस ले लिया गया है।