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पत्र : एन० पी० काँवीको


उत्सुक हूँ। इसलिए मैं परमश्रेष्ठके विचारार्थ स्वदेशी सम्बन्धी अपने विचार और तर्क प्रस्तुत कर रहा हूँ। मुझे पूरी आशा है कि वे उसे पढ़नेका समय निकाल सकेंगे और यदि सम्भव हो तो मेरे तर्कोंके अन्तमें जो प्रार्थना की गई है उसे पूरा करनेकी कृपा करेंगे।

स्वदेशी

स्वदेशी मेरी कल्पनाके अनुसार यह है : भारतकी जरूरत भरके लिए पर्याप्त कपड़ा तैयार करना और उसका समुचित वितरण करना; इसमें घरेलू उत्पादनको प्रोत्साहित करनेके उद्देश्य से लोगोंको यह शपथ लेनेके लिए राजी करना भी शामिल है कि वे स्वदेशी वस्त्र ही पहनेंगे। इस शपथमें शपथ लेनेवालेको अधिकार रहेगा कि उसके पास फिलहाल जो विदेशी वस्त्र हों वह उन्हें आवश्यकता पड़नेपर पहनता रहे। स्वदेशीकी कल्पना वस्तुतः एक धार्मिक और आर्थिक आवश्यकताके रूपमें ही की गई है। और यद्यपि इसमें एक उच्च नैतिक ढंगके राजनीतिक परिणामोंकी सम्भावनाएँ भरी पड़ी हैं, तथापि इसलिए कि सब लोग इसमें भाग ले सकें, स्वदेशीके प्रचारको केवल धार्मिक और आर्थिक पहलुओंतक ही सीमित रखा गया है। स्वदेशी वस्त्र या तो कताई-बुनाई करनेवाली मिलों द्वारा तैयार किया जा सकता है या हाथ कताई और हाथ-बुनाई द्वारा। फिलहाल इस समय हम हाथसे कातने और हाथसे बुननेपर ही जोर दे रहे हैं।

तर्क

हम ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि किसानों अर्थात् भारतकी ७३ प्रतिशत आबादी- को एक ऐसे उद्योगकी आवश्यकता है जो कृषिका पूरक हो। यह जन संख्या सालमें लगभग चार महीने बेकार रहती है। आजसे सौ साल पहले भारतकी स्त्रियाँ पैसेके लिए या शौकिया सूत कातती थीं। हजारों पेशेवर बुनकर कपड़ा बुनते थे जो घरेलू आवश्यकताओंके लिए पर्याप्त होता था। इसकी जाँच करना तो अनावश्यक है कि आज भी वैसा ही किया जा सकता है या नहीं; इसमें सन्देहकी गुंजाइश नहीं है कि यदि इन लाखों किसानोंको सूत कातने और बुननेकी ओर प्रवृत्त किया जा सके तो इस देशका जो धन विदेशों में चला जाता है उसका परिमाण बहुत घट जायेगा और साथ ही किसान अपनी आमदनी भी बढ़ा सकेंगे। कई केन्द्रोंमें जाकर और सैकड़ों स्त्रियोंसे मिलकर मैंने देखा है कि वे कताईका धन्धा फिरसे शुरू करके कुछ पैसे कमा सकने के कारण बहुत खुश हैं। मुझे मालूम है कि पिछले अकालके दौरान बीजापुरकी बहुत-सी गरीब औरतोंके लिए ये थोड़ेसे पैसे भी वरदान हो गये थे। अकेले एक उसी गाँव में आज १५० औरतें प्रतिदिन करीब आधा मन सूत कातती हैं और प्रत्येक औरत औसतन ३ पैसे कमा लेती है जो उसके लिए अपने बच्चोंका दूध खरीदने-भरको पर्याप्त हैं। मैं हाथ कताई और हाथ-बुनाईको अकालका मुकाबला करनेका एक बहुत ही सहज साधन मानता हूँ। जब पिछले शुक्रवारको मैंने पूर्वी खानदेशकी कुमारी लैथमसे भी यह सुना कि उस जिलेकी औरतें किसी ऐसे घरेलू धन्धेके लिए तरस रही

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