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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दें, अगर उच्च पदाधिकारी अपने उच्चासनोंको छोड़ दें और भावी विधायकगण कौंसिलोंका बहिष्कार करें तो सरकारके होश तुरन्त ठिकाने आ जायें और वह जनताकी इच्छाको कार्यान्वित करनेके लिए तैयार हो जाये। क्योंकि तब तो सरकारके सामने विशुद्ध रूपसे स्वेच्छाचारी शासनके अलावा और कोई विकल्प ही नहीं रह जायेगा। इसका मतलब शायद सैनिक तानाशाही होगी। लेकिन अब विश्व-मतका जोर इतना बढ़ गया है कि ऐसी तानाशाहीकी बात ब्रिटेन आसानीसे नहीं सोच सकता। मैंने जो-कुछ करनेका सुझाव दिया है, वह सब अगर किया जाये तो दुनिया एक ऐसी शान्तिपूर्ण कान्तिका नजारा देखेगी जैसी शान्तिपूर्ण क्रान्ति उसने कभी नहीं देखी है। अगर एक बार यह अहसास हो जाये कि असहयोग कभी विफल हो ही नहीं सकता तो रक्तपात और हिंसा बिलकुल उठ जाये।

हाँ, इसमें कोई सन्देह नहीं कि राष्ट्रीय असहयोग-जैसा सख्त कदम तभी उठाया जा सकता है, जब उद्देश्य बहुत बड़ा हो। और मैं कहता हूँ कि इस अवसरपर इस्लामका जैसा अपमान किया गया है, वैसा अपमान फिर अगली एक सदी तो नहीं ही किया जा सकता। अगर इस्लामको उठना है तो वह अभी उठे, अन्यथा अगर सदा नहीं तो कमसे-कम एक सदीतक तो वह इसी अवस्था में पड़ा रहेगा। और जहाँ तक अन्यायकी गुरुताकी बात है, जलियाँवाला बागमें जो नरसंहार किया गया, उसके बाद पंजाबमें जो बर्बरता बरती गईं, हंटर समितिने जिस तरह सारे मामलेकी लीपापोती की, भारत सरकारने जो खरीता[१]भेजा, श्री मॉण्टेग्युने जिस तरह पहले वाइसरायका, और फिर पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरका समर्थन करते हुए पत्र[२]लिखा, और मार्शल लॉके दौरान पंजाबियोंके जीवनको नरक बना देनेवाले अधिकारियोंको हटानेसे जिस तरह इनकार किया गया, उससे अधिक बड़े अन्यायकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। इन कार्रवाइयोंके रूपमें भारत के प्रति अन्यायोंका एक ताँता-सा बाँध दिया गया, और अगर भारत में तनिक भी आत्मसम्मानकी भावना हो तो उसे अपनी समस्त भौतिक सम्पदाओंका बलिदान करके भी इन अन्यायोंका निराकरण करना है। और अगर वह ऐसा नहीं करता तो उसका मतलब यह होगा कि उसने एक छोटेसे तात्कालिक लाभके लिए अपनी आत्मा बेच दी।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१-७-१९२०

 
  1. देखिए खण्ड १७, परिशिष्ट ४ ।
  2. देखिए खण्ड १७, परिशिष्ट ५ ।