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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१०६

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किया है; लेकिन जबतक कही गई बातमें वजन हो तबतक मैं उसकी भाषाको लेकर झगड़नेको तैयार नहीं हूँ।

श्री एन्ड्र्यूज के खयालसे, श्री मुहम्मद अलीकी भाषासे ऐसा प्रकट होता है कि वे आर्मीनियावालों की मर्जीके खिलाफ आर्मीनियाकी स्वतन्त्रताका और अरबोंकी मर्जीके खिलाफ अरबकी स्वतन्त्रताका विरोध करेंगे। मुझे इसमें ऐसा कोई आशय दिखाई नहीं देता। जिस चीजका वे और सारा मुस्लिम जगत् तथा मेरे खयालसे इसीलिए सभी हिन्दू लोग विरोध करते हैं वह है इंग्लैंड तथा अन्य शक्तियोंका, आत्म-निर्णयके सिद्धान्तकी आड़ लेकर, टर्कीको बिलकुल श्रीहीन और खण्ड-खण्ड कर देनेका लज्जाजनक प्रयत्न। अगर मैं इस्लामकी आत्माकी सही पहचानता हूँ तो कहूँगा कि इसका स्वरूप सच्चे अर्थोंमें तत्त्वतः गणतान्त्रिक है। इसलिए अगर अरब या आर्मीनिया टर्कीसे स्वतन्त्र होना चाहते हों तो उन्हें स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए। जहाँतक अरबकी बात है, उसकी पूर्ण स्वतन्त्रताका मतलब होगा खिलाफतको टर्कीके सुलतानसे लेकर किसी अरब सरदारके हाथोंमें सौंप देना। इस अर्थमें अरब सम्पूर्ण मुस्लिम संसारका है, सिर्फ अरबोंका ही नहीं। और अरब लोग मुसलमान रहते हुए मुस्लिम जगत्के मतकी अवगणना करके अरबको सिर्फ अपनी सम्पत्ति बनाकर नहीं रख सकते। खलीफाको मुस्लिम तीर्थस्थानोंका संरक्षक होना चाहिए और इसलिए उन स्थानोंको जानेवाले मार्गोंपर भी उसका नियन्त्रण रहना चाहिए। उसे ऐसी स्थितिमें होना चाहिए कि वह सारी दुनियाके खिलाफ उनकी रक्षा कर सके। और अगर किसी ऐसे अरब सरदारका उदय होता है जो इस कसौटीपर टर्कीके सुलतानसे अधिक खरा उतरे तो मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं कि मुसलमान लोग उसीको खलीफा मान लेंगे।

इस प्रकार मैंने सैद्धान्तिक दृष्टिकोणसे इस प्रश्नपर विचार कर लिया। वस्तुस्थिति यह है कि इंग्लैंडके मन्त्रियोंकी बातोंका न मुसलमान भरोसा करते हैं और न हिन्दू। वे नहीं मानते कि अरब या आर्मीनियावाले टर्कीसे पूर्ण रूपसे स्वतन्त्र होना चाहते हैं। हाँ, इसमें कोई सन्देह नहीं कि वे स्वशासन चाहते हैं। इस तथ्यसे किसीको इनकार नहीं है। लेकिन अरब लोग या आर्मीनियावाले टर्कीसे——नाममात्रको——कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते, ऐसी निश्चित जानकारी किसीको नहीं है।

लेकिन इस समस्याका समाधान एक आदर्श स्थितिके सैद्धान्तिक विवेचनमें नहीं। इसका हल यह है कि ईमानदारी के साथ एक मिले-जुले आयोगकी नियुक्ति की जाये जिसमें सर्वथा स्वतन्त्र विचारवाले भारतीय मुसलमान तथा हिन्दू और ऐसे ही स्वतन्त्र विचारोंके यूरोपीय सदस्य शामिल हों। ये लोग जाँच-पड़ताल करके इस बातका पता लगायें कि आर्मीनियावाले और अरब लोग सचमुच क्या चाहते हैं, और फिर कोई ऐसी व्यवस्था करें जिससे विभिन्न राष्ट्रोंकी माँगों और इस्लामकी माँगोंके बीच सामंजस्य स्थापित करके दोनोंको सन्तुष्ट किया जा सके।

सभी जानते हैं कि स्मर्ना और थ्रेस, जिसमें आड्रियानोपल भी शामिल है, बेईमानीके साथ टर्कीसे छीन लिये गये हैं; सीरिया तथा मेसोपोटामियाका शासनाधिकार दूसरोंको दे दिया गया है; और हेजाज में ब्रिटिश संगीनोंके संरक्षण में ब्रिटिश