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विदेशोंमें भारतीय

सरकारका एक मनपसन्द व्यक्ति प्रतिष्ठित कर दिया गया है। यह स्थिति असह्य है, अन्यायपूर्ण है। इसलिए आर्मीनिया और अरबके सवालोंके अतिरिक्त, उन दूसरी बेईमानियों और धोखेबाजियोंको भी तुरन्त दूर कर देना जरूरी है जो शान्ति-सन्धिकी शर्तोको दूषित कर रही हैं। इस तरह आर्मीनिया और अरबकी स्वतन्त्रताके सवालके न्यायसम्मत निपटारेका मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। इस बातसे सिद्धान्ततः तो कोई इनकार नहीं ही करता कि इन दोनोंको स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए, इसलिए अगर सम्बन्धित लोगोंकी इच्छाका किसी हदतक एक ठीक अन्दाजा लगा दिया जाये तो बहुत आसानी से व्यवहारतः भी इन्हें स्वतन्त्रताकी गारंटी दी जा सकती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१-७-१९२०

 

४८. विदेशोंमें भारतीय

बम्बईके एक्सेल्सियर थियेटरमें ईस्ट आफ्रिका और फीजीके विषयमें प्रस्ताव पास करनेके लिए एक सभा[१]हुई थी जिसकी अध्यक्षता सर नारायण चन्दावरकरने की थी। सभा बहुत शानदार थी। सभा-भवन खचाखच भरा हुआ था। श्री एन्ड्र्यूज ने अपने भाषणमें इस बातको स्पष्ट किया कि आवश्यकता किस बातकी है। उन्होंने बताया कि पूर्वी आफ्रिकामें भारतीयोंके राजनीतिक और नागरिक दोनों ही अधिकार खतरेमें हैं। श्री अनन्तानीने, जो स्वयं पूर्वी अफ्रिकाके एक प्रवासी भारतीय हैं, एक जोरदार भाषणमें बतलाया कि वहाँ भारतीय सबसे पहले जाकर बसे थे। काणे नामक एक भारतीय मल्लाहने ही इतिहास में सुपरिचित वास्को-डि-गामाको भारत पहुँचनेका मार्ग दिखाया था। हर्षध्वनिके बीच उन्होंने कहा कि डा॰ लिविंग्स्टोनकी खोज करने और उन्हें राहत देनेके लिए स्टेनलीने जो यात्रा की थी उसकी पूरी व्यवस्था भी भारतीयोंने की थी। भारतीय मजदूरोंने अपना जीवन बड़े खतरेमें डालकर युगाण्डा रेलवेको बनाया था। ठेका एक भारतीय ठेकेदारने ले रखा था। हुनरका काम भारतीय कारीगरोंने ही किया था। और अब उन्हींके देशवासियोंको इसके प्रयोगसे वंचित किये जानेका खतरा सामने है।

पूर्वी अफ्रिकाकी उच्च भूमिको उपनिवेश तथा निचली जमीनको रक्षित प्रदेश घोषित कर दिया गया है। इस घोषणामें एक कुटिल अभिप्राय निहित है। उपनिवेशप्रथा यूरोपियोंको अपेक्षाकृत बड़े अधिकार प्रदान करती है। इस प्रयासमें कि ऊँची भूमिको गोरे लोग अपने ही रहने-बसनेका स्थल न बना बैठें और भारतीयोंको रहनेबसनेके लिए नीची दलदलवाली जमीन ही न दी जाये, भारत सरकारको अपने सब साधन काममें लाने पड़ेंगे।

१८-६

  1. देखिए "भाषण : फीजीके सम्बन्धमें", १३-७-१९२०।