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"हिजरत" और उसका अर्थ

प्राप्त करनी चाहिए तभी हम विदेशमें अपनी प्रतिष्ठाके सम्बन्धमें कोई प्रभावकारी छाप डालनेकी उम्मीद कर सकते हैं।

इसका मतलब यह नहीं है कि जबतक हम अपने घरमें परेशानीकी हालतमें रह रहे हैं तबतक हम विदेशोंमें अधिक अच्छा काम करनेका प्रयत्न न करें। हमें लगातार प्रयत्न तो करना ही चाहिए और विदेशोंमें रहनेवाले अपने देशवासियोंकी सहायता अवश्य करनी चाहिए। बात केवल यह है कि अगर हम अपनी सच्ची स्थिति जान जायें तो हम और विदेशोंमें रहनेवाले हमारे भारतीय सहिष्णु और धैर्यवान बनने लगेंगे और यह जानने लगेंगे कि हमारी मुख्य शक्ति अपने ही देशमें अपनी स्थिति सुधारनेकी दिशा में केन्द्रीभूत होनी चाहिए। यदि हम यहाँ अपनी स्थितिको इतना ऊँचा उठा सकें कि बराबरके साझीदारोंकी भाँति रहने लगें——नाम-मात्रके लिए नहीं बल्कि वास्तव में——ताकि प्रत्येक भारतीय ऐसा अनुभव करने लगे तो शेष बातें अपनेआप हल हो जायेंगी।

फीजीका प्रश्न एक भिन्न प्रश्न है यद्यपि ऊपर जो-कुछ कहा गया है, वह उसके सम्बन्धमें भी लागू होता है। वहाँ अब दर्जेका सवाल नहीं रह गया है। हम तो केवल इतना ही जानना चाहते हैं कि मार्शल लॉ क्यों जारी किया गया, गोली क्यों चलाई गई, और डाक्टर मणिलाल और श्रीमती मणिलालको बिना मुकदमा चलाये और बचावका अवसरतक दिये बिना निर्वासित क्यों किया गया? सरकारने हमें बहुत लम्बे समय तक इन्तजारमें रखा है। हमें पूर्ण न्यायके लिए आग्रह करना चाहिए और जितनी जल्दी हो सके हमें उन सबको जो मातृभूमि लौट आना चाहते हैं वापस बुला लेना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१-७-१९२०

 

४९. "हिजरत" और उसका अर्थ

भारत एक महाद्वीप है। यहाँके हजारों लोग, जो प्रबुद्ध और मुखर हैं, जानते हैं कि यहाँ लाखों-करोड़ों मूक बाशिन्दे आज क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं। सरकार और शिक्षित भारतीय भले ही यह सोचें कि खिलाफत आन्दोलन आई-गई हो जानेवाली चीज है, लेकिन इस देशके करोड़ों मुसलमानोंका विचार इससे भिन्न है। उनकी हिजरत बहुत तेजीसे बढ़ रही है। अखबारोंमें महत्त्वहीन मानकर छापी गई ऐसी खबर देखनेको मिली है कि अफगानिस्तानके लिए एक विशेष ट्रेन रवाना हुई, जिसमें एक बैरिस्टरके साथ साठ औरतें और बीस दुधमुँहे शिशुओं-सहित चालीस बच्चे भी थे। ट्रेनमें सवार लोगोंकी संख्या कुल मिलाकर ७६५ थी। रास्तेमें लोगोंने उनका बड़ा जय-जयकार किया। उन्हें नकद रुपया, खाद्य पदार्थ और अन्य चीजें भी भेंट की गईं और मार्गमें और भी मुहाजरीन उनके साथ हो गये। कोई शौकत अली चाहे कितना