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भाषण : कराचीकी ईदगाहमें

प्रभाव डालनेवाले इस आवश्यक प्रश्नके विषयमें सोचते-गुनते हैं और जो आन्दोलनके प्रति सहानुभूति रखते हैं, अपनी उपाधियों अथवा अवैतनिक नौकरियोंको त्याग देंगे।

[ मो॰ क॰ गांधी
अबुल कलाम आजाद[१]
शौकत अली
अहमद हाजी सिद्दीक खत्री
सैफुद्दीन किचलू
फजलुल हसन हसरत मोहानी[२]
मुहम्मद अली
असहयोग कमेटीके सदस्य,
माउण्ट रोड, मजगाँव, बम्बई][३]

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २१-७-१९२०

 

५१. भाषण : कराचीकी ईदगाहमें

२२ जुलाई, १९२०

२२ जुलाईको खिलाफतकी [एक सार्वजनिक] सभा कराचीके ईदगाह मैदानमें प्रोफेसर वास्वाणीकी[४]अध्यक्षतामें हुई। निम्नलिखित व्यक्तियोंने भाषण दिये : प्रोफेसर वास्वाणी, श्री गांधी, डा॰ किचलू, मौ॰ शौकत अली और कराचीके लोकामल चेलाराम सेठ। श्री वास्वाणीने सभाकी कार्यवाही प्रारम्भ की। तदनंतर गांधीजीने अस्वस्थताके कारण बैठे-बैठे ही अपना व्याख्यान दिया। गांधीजीने कहा :

अपनी कराची यात्राके कारण बतलानेसे पहले मैं आप लोगोंसे कराची रेलवे स्टेशनपर मैंने जो दृश्य देखा उसकी चर्चा करना चाहता हूँ। हमें आज सवेरे पहुँचना था, लेकिन एक दुर्भाग्यपूर्ण रेल-दुर्घटना और उसके बाद ही रेलकी पटरी अवरुद्ध हो जानेके कारण हम लोग रातको ९ बजे पहुँच सके। कराची सिटी स्टेशन खचाखच भरा हुआ था; बहुतसे लोग सायबानोंमें खड़े हुए थे और कितने ही सीटी बजा

  1. १८८९-१९५८; कांग्रेसी नेता तथा कुरानके प्रसिद्ध व्याख्याकार; भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके दो बार अध्यक्ष निर्वाचित; भारतीय सरकारके शिक्षा-मन्त्री।
  2. खिलाफत आन्दोलनके एक नेता, जो ब्रिटिश मालके बहिष्कारपर जोर दे रहे थे और जो २४ नवम्बर, १९१९ को आयोजित खिलाफत सम्मेलनमें गांधीजीके मुख्य विरोधी थे।
  3. जैसा २२-७-१९२० के बॉम्बे क्रॉनिकल में है।
  4. टी॰ एल॰ वास्वाणी (१८७९–१९६६); साधु वास्वाणीके नामसे विख्यात सिन्ध प्रान्तके एक संत पुरुष; लेखक तथा मीरा ऐजुकेशनल इन्स्टीट्यूशन्स, पूनाके संस्थापक।