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५६.तार : अमृतलाल ठक्करको



हैदराबाद (सिन्ध)
२४ जुलाई, १९२०

अमृतलाल ठक्कर[१]
अकाल सहायता समिति
पुरी

अपना यह महान् कार्य ऐसी स्थितिमें न छोड़ें कि हानि हो जाये। इसलिए अपने अकाल सम्बन्धी सेवा-कार्यको समाप्त कर लेने पर ही आप ब्रिटिश गियाना जा सकते हैं।

गांधी

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९२०, पृष्ठ ११३१
 

५७. भाषण : सिन्ध राष्ट्रीय कालेजमें

२४ जुलाई, १९२०

महात्मा गांधी आज (शनिवार, तारीख २४ को) सुबह सिन्ध राष्ट्रीय कालेजमें पधारे। कालेजके फाटकपर कर्मचारीगण तथा विद्यार्थियोंने उनका स्वागत किया; उन्हें कालेजके भिन्न-भिन्न विभागोंमें ले जाया गया। श्रीमती सरलादेवी चौधरानीके साथ [निरीक्षणके पश्चात्] कालेजके हॉलमें लौटनेपर उन्हें हिन्दीमें मानपत्र भेंट किया गया। उसका उत्तर गांधीजीने हिन्दीमें[२]दिया।

उन्होंने कहा कि हिन्दीमें मानपत्र पाकर मुझे सन्तोष हुआ है, क्योंकि हिन्दी उन वस्तुओंमें से एक है जिनकी मुझे लगन लगी हुई है और जिसकी हिमायत मैं अपने व्याख्यानों और लेखों द्वारा करता आया हूँ। किसी व्यक्तिको सम्मानित करनेका सबसे अच्छा तरीका उसके कहनेपर चलना है न कि तालियोंकी गड़गड़ाहट करना। देशमें आज जो शिक्षाप्रणाली प्रचलित है उसके सम्बन्धमें जब मैं विचार करता हूँ

  1. अमृतलाल विठ्ठलदास ठक्कर (१८६९-१९५१); गुजराती इंजीनियर; भारत सेवक समाजके आजीवन सदस्य; जीवन-भर हरिजनों तथा आदिवासियोंके उत्थानके लिए कार्य करते रहे। उन दिनों वे लोक अकाल सहायता समिति (पीपल्स फैमिन रिलीफ कमेटी), पुरीके मन्त्री थे।
  2. मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।