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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वाई न करे, जिसकी भयंकरता आधुनिक कालके इतिहासमें बेमिसाल है। जहाँतक स्वयं मेरी बात है, मैं सरकारकी उन्मत्तता और क्रोधकी उतनी परवाह नहीं करता जितनी कि भीड़के कोध्रकी। भीड़का क्रोध तो समग्र राष्ट्रकी अव्यवस्थित स्थितिका द्योतक है जब कि सरकार तो आखिरकार एक छोटासा संगठनमात्र है; और इसीलिए सरकारके क्रोधकी अपेक्षा भीड़के कोध्रसे निपटना कहीं अधिक कठिन होता है। जिस सरकारने अपने-आपको शासन करनेके अनुपयुक्त सिद्ध कर दिया हो उसे उखाड़ फेंकना, किसी भीड़में शामिल अज्ञात लोगोंके पागलपनका इलाज करनेकी अपेक्षा, आसान है। लेकिन ऐसे महान् आन्दोलनोंको सिर्फ इस कारण से बिलकुल बन्द नहीं किया जा सकता कि सरकार या जनता या कि दोनों क्रोधके प्रवाहमें गलत काम कर बैठते हैं। अपनी भूलों और विफलताओंसे हमें कुछ सीखना है। कोई भी सच्चा सेनापति इस कारण युद्ध करना छोड़ नहीं देता कि उसे हार खानी पड़ी है, या दूसरे शब्दोंमें, उससे गलतियाँ हुई हैं। और इसलिए हमें आशा और विश्वासके साथ उस दिनकी प्रतीक्षा करनी चाहिए जब असहयोग आन्दोलन छेड़ा जायेगा। पहलेकी ही तरह इसका प्रारम्भ प्रार्थना और उपवासके साथ करना है, जो इस विरोध-प्रदर्शनके धार्मिक स्वरूपका द्योतक होगा। उस दिन हड़ताल भी की जाये और सभाएँ आयोजित करके ऐसे प्रस्ताव पास किये जायें, जिनमें शान्ति-सन्धिकी शर्तोंमें संशोधन करने तथा पंजाबके मामलेमें न्याय करनेकी प्रार्थना की जाये और जबतक न्याय नहीं दिया जाता तबतक असहयोगपर डटे रहनेका निश्चय किया जाये।

पहली अगस्तसे ही अपने खिताबों और अवैतनिक पदोंका त्याग भी प्रारम्भ हो जाना चाहिए। कुछ लोगोंने ऐसा सन्देह प्रकट किया है कि खिताबों और अवैतनिक पदोंका त्याग करनेके लिए पर्याप्त पूर्वसूचना नहीं दी गई है। लेकिन अगर यह बात ध्यानमें रखें कि खिताबोंका त्याग पहली अगस्त से ही शुरू होना है तो यह सन्देह तुरन्त दूर हो जाता है। और खिताबोंका त्याग सिर्फ इसी दिन नहीं करना है। सच तो यह है कि मैं ऐसी आशा भी नहीं करता कि पहले ही दिन इस अनुरोधका उत्तर बहुत अधिक लोग दे सकेंगे। इसके लिए काफी जोरदार प्रचार करना पड़ेगा और प्रत्येक खिताबयाफ्ता या उच्च पदस्थ व्यक्तितक सन्देश पहुँचाना होगा तथा इस तरह खिताबों और पदोंके त्याग करनेमें जो कर्त्तव्य निहित है, वह प्रत्येक सम्बन्धित व्यक्तिको समझाना होगा।

लेकिन इस आन्दोलनमें सबसे बड़ी चीज है लोगोंमें व्यवस्था, अनुशासन और सहयोगकी भावना पैदा करना तथा कार्यकर्त्ताओंके बीच सामंजस्य बनाये रखना। संगठन ठीकसे किया जाये। पंजाबकी सभाओंमें जो हजारों व्यक्ति एकत्र हुए उससे हमें भरोसा हुआ है कि लोग सरकारके साथ सहयोग बन्द कर देना चाहते हैं, लेकिन उन्हें यह भी जानना चाहिए कि यह काम कैसे किया जाये। अधिकांश लोग सरकारके पेचीदे तंत्रको नहीं समझते। वे नहीं महसूस करते कि आज सरकार जो टिकी हुई है वह सिर्फ इसी कारण कि वे अपने-अपने तरीके से, जिसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है, उसे सहारा दे रहे हैं। इस प्रकार प्रत्येक नागरिक अपनी सरकारके प्रत्येक कामके