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६६. तार : तीसरे खिलाफत दिवसके बारेमें[१]

बम्बई
२९ जुलाई, १९२०

आशा है कि मद्रास प्रेसीडेन्सी पहली अगस्तको पूर्णतया शान्त और अनुशासित रहकर, पूरी हड़ताल रखकर, हृदय से प्रार्थना करते हुए, बड़ी-बड़ी पर अनुशासनपूर्ण सभाएँ करके और अधिक से अधिक खिताब लौटाकर, [खिलाफतकी तीसरी वर्षगांठ मनाने में] पूरा-पूरा योग देगी। सभी सरकारी आदेशोंका सख्ती से पालन होना चाहिए। दृढ़ताके साथ सहयोगसे हाथ खींचकर और आदेशोंका पालन करके ही खिलाफतके सवालका हल और राष्ट्रीय सम्मानकी रक्षा तथा हिन्दू-मुस्लिम एकतामें वृद्धि की जा सकती है।

[अंग्रेजी से]
हिन्दू, ३०-७-१९२०

 

६७. भाषण : बम्बईमें

२९ जुलाई, १९२०

बम्बईके मुजफ्फराबाद मुहल्लेमें २९ जुलाईको मुसलमानोंकी एक बड़ी सभामें आसन्न असहयोग आन्दोलन, जो १ अगस्तसे आरम्भ हो गया है, पर बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि अब असहयोगपर भाषण देनेका समय बीत गया और अब तो उसे व्यावहारिक रूप देनेका समय आ पहुँचा है। लेकिन उसकी पूर्ण सफलताके लिए दो चीजें आवश्यक हैं——एक तो यह कि लोगोंमें हिंसात्मक प्रवृत्तिका कहीं कोई लेश नहीं रहना चाहिए; और दूसरे उनमें आत्म-बलिदानकी भावना होनी चाहिए। मेरी कल्पनाका असहयोग किसी ऐसे वातावरणमें सम्भव नहीं हो सकता जिसमें हिसाकी भावना व्याप्त हो। हिंसा क्रोधका प्रदर्शन है और ऐसा कोई भी प्रदर्शन हमारी मूल्यवान शक्तिका अपव्यय है। क्रोधको वशमें रखना राष्ट्रीय शक्तिका संचय करना है, जिसका यदि व्यवस्थित ढंगसे उपयोग किया जाये तो आश्चर्यजनक परिणाम निकल सकते हैं। असहयोगकी मेरी कल्पनामें लूट-खसोट, आगजनी और भीड़के पागलपनसे सम्बद्ध अन्य ऐसी ही कार्रवाइयोंके लिए स्थान नहीं है। मेरी योजनामें यह पहले ही

  1. यह तार गांधीजी और शौकत अलीने मद्रास अहातेको एक सन्देशके रूपमें भेजा था।