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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१३३

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भाषण : बम्बईमें

अपना सारा विवेक खो दिया है उस सरकारपर भी इन सब बातोंका नैतिक प्रभाव अवश्य पड़ेगा।

स्वदेशी

स्वदेशीको असहयोग आन्दोलनके एक कार्यक्रमके रूपमें स्वीकार करनेमें मुझे संकोच होता है। मुझे तो स्वदेशी प्राणोंकी तरह प्यारी है। लेकिन अगर स्वदेशीसे खिलाफत आन्दोलनको कोई वास्तविक सहायता नहीं मिल सकती तो इस आन्दोलनमें स्वदेशीके सवालको भी शामिल करनेकी मेरी इच्छा नहीं है। चूँकि असहयोगकी कल्पना आत्म- बलिदानकी भावनापर आधारित है, इसलिए इस आन्दोलनमें स्वदेशीका एक उचित स्थान है। विशुद्ध स्वदेशीका मतलब है बनाव-श्रृंगारके प्रति अपने मोहका परित्याग। मैं समस्त राष्ट्रसे अनुरोध करता हूँ कि वह यूरोप और जापानके बनाव-श्रृंगारके सामानके प्रति अपना मोह त्याग दे और लाखों-करोड़ों बहनोंके हाथोंसे काते गये सूतसे हथकरघोंपर बुने सुन्दर स्वदेशी वस्त्रोंका उपयोग करनेमें ही सन्तोष माने। अगर हमारा राष्ट्र अपने धर्मों और आत्म-सम्मानके लिए उपस्थित खतरेके प्रति सचमुच जागरूक हो गया हो तो वह यह अनुभव किये बिना नहीं रह सकता कि स्वदेशीको तत्काल ही हर तरहसे अपना लेना उसके लिए अत्यन्त आवश्यक है, और अगर भारतके लोग धार्मिक उत्साहके साथ स्वदेशीको अपना लें तो मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ कि आपके हाथोंमें एक नई ताकत आ जायेगी, जिसका स्पष्ट प्रभाव सारी दुनियापर पड़ेगा। इसलिए मैं मुसलमान भाइयोंसे यह अपेक्षा करता हूँ कि उन्हें सुन्दर और महीन विदेशी वस्त्रोंका जो शौक है उस शौकको छोड़कर अपने भाइयों और बहनोंकी मेहनत से उनके घरोंमें तैयार किये गये सादे वस्त्रोंका उपयोग करें और इस तरह इस क्षेत्रमें शेष लोगोंका पथ-प्रदर्शन करें। और मुझे आशा है कि इसमें हिन्दू भी उनका अनुकरण करेंगे। यह एक ऐसा त्याग है, जिसमें स्त्री-पुरुष, बूढ़े- बच्चे सभी शामिल हो सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-८-१९२०