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६९. हमारा कर्त्तव्य

आखिर पहली अगस्तका दिन आ पहुँचा। असहकारके अनेक दोष गिनाये जाते हैं। किन्तु इसके विरुद्ध सबसे बड़ी आपत्ति तो यह उठाई गई है कि असहकार किया गया तो खून-खराबी अवश्य होगी।

इस दोषसे मुक्त रहना नितान्त सहज है। यदि प्रत्येक स्थानपर थोड़े भी लोग शान्ति बनाये रखनेके लिए तत्पर रहें तो शान्तिका वातावरण बनाये रखनेमें कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए। असहकारके लिए सबसे पहले शान्तिका ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। यदि हम शान्ति नहीं रख सकते तो फिर हमें असहकार करनेका अधिकार ही नहीं है।

कितने ही लोग आयरलैण्ड के सिन-फेन आन्दोलनका उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि वहाँ असहकार और हिंसा दोनों चलते हैं। दोनों साथ-साथ चलते हैं यह तो सही है लेकिन इसी कारण आयरलैण्डको अभीतक स्वराज्य नहीं मिल पाया है। इसके सिवा हममें तथा आयरलैण्डमें बहुत भेद है। हम हिंसारहित असहकारसे सहज ही अपनी इच्छाकी पूर्ति कर सकते हैं। हिंसा होते ही हमें असहकार भी रोकना पड़ेगा। हिन्दुस्तान-जैसे बड़े देशमें लोग हिंसा से अपनी इच्छापूर्ति नहीं कर सकते और यदि हम शान्तिपूर्वक असहकार करें तो कोई भी इतने बड़े देशके शासनको नहीं चला सकता।

इसलिए हिंसाको रोकनेका सफल प्रयत्न ही हमारी सबसे बड़ी विजय है। हिंसा हो तो उसे रोकने के लिए हम स्वयंमेव सरकारकी सहायता करेंगे——करनी भी चाहिए। हिंसा होनेका अर्थ यह होगा कि हम समाजपर कोई प्रभाव नहीं डाल पाये। असहकारके सम्बन्धमें दूसरी चर्चा यह है कि लोग असहकार करनेके लिए तैयार ही नहीं हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि लोगों में आत्म-बलिदानकी शक्ति नहीं है।

जो सरकार अन्यायकी पराकाष्ठातक पहुँच जाये उसकी ओरसे प्राप्त हुए मानको हम मान समझें, उसकी पाठशालाओंमें जाकर पढ़ें और उसकी अदालतोंमें हम वकालत करें तो फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि हम उसके कार्यसे असन्तुष्ट हैं?

कुछ लोग लिखते हैं कि यदि थोड़े-से लोग अपनी पदवियाँ छोड़ दें, अपने बच्चोंको पाठशालाओंसे उठा लें तथा दो-चार वकील वकालत करना बन्द कर दें तो उसका सरकारपर क्या असर हो सकता है? यह शंका उचित नहीं है। यदि अन्यायी सरकारकी मदद करने अथवा उसका अनुग्रह लेनेकी बातको हम पाप समझते हों तो हम संख्यामें कम हों अथवा ज्यादा, हमें उस सहायता अथवा अनुग्रहका परित्याग करना चाहिये। इसके अतिरिक्त अधिक लोगोंसे त्याग करवानेका उत्तम मार्ग भी यही है।

दुनियाके किसी भी भाग में लोग एकाएक सुधारोंको स्वीकार नहीं कर लेते। शुरुआत हमेशा थोड़े लोगोंसे होती है; और जब अधिकांश लोग थोड़े व्यक्तियोंकी