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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृढ़तासे अवगत हो जाते हैं तब उनका अनुकरण करते हैं। सब लोगोंके करनेपर ही हम अमुक कार्य करेंगे, ऐसा सोचें तो सुधार होगा ही नहीं; इससे विलम्ब तो होता ही है और कभी-कभी उससे बहुत नुकसान हो जाता है। इसके अलावा सबकी अथवा अधिकांश लोगोंकी बाट जोहना तो अपने कर्त्तव्यके प्रति हमारे अल्प विश्वासका द्योतक है। इसलिए मुझे उम्मीद है कि जिन लोगोंने यह समझ लिया है कि हमें सरकारकी मदद नहीं करनी चाहिए, वे थोड़े हों अथवा ज्यादा, असहकार करना आरम्भ कर देंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १-८-१९२०

७०. श्री मॉण्टेग्युकी धमकी

श्री मॉण्टेग्युने खिलाफत सम्बन्धी प्रश्नका उत्तर देते हुए मेरे बारेमें जो धमकी[१]दी है उससे हमें उत्तेजित होनेका कोई कारण नहीं है। श्री मॉण्टेग्यु तथा अन्य अधिकारियोंके आदर्शमें कोई भेद नहीं है। यह तो अधिकारीवर्गका रवैया ही है कि लोकमत के विरुद्ध कार्य करनेके प्रयत्नमें वे जनताको दबाने में कोई कसर नहीं उठा रखते। श्री मॉण्टेग्यु उस आदतसे मुक्त कैसे रह सकते हैं? जनता खिलाफत और पंजाब के अन्यायके विरोधमें अपना सिर उठा रही है। उसे अपनी मनमानी करने देनेका अर्थ तो सत्ताका झुक जाना ही हुआ। और सत्ता झुकना नहीं चाहती; इसीसे वह जनताको बलपूर्वक दबा रही है।

ऐसे समय यदि जनता मेरी सलाह माने तो राज्याधिकारी मुझे गिरफ्तार करनेके सिवा और क्या करेंगे?

मुझे गिरफ्तार करनेके तीन उद्देश्य हो सकते हैं :

१. मुझे आतंकित करके मेरे विचारोंमें परिवर्तन लाया जाये।

२. मुझे जनतासे अलग करके लोकमतको दुर्बल बनाया जाये।

३. मुझे जनताके बीचसे हटाकर उसकी परीक्षा ली जाये कि वह इस अन्यायसे सचमुच घबराती है या नहीं।

मेरा खयाल है कि सरकारका मुझे आतंकित करनेका कोई इरादा नहीं हो सकता। लोकमतको दुर्बल बनानेका हेतु तो है ही, लेकिन अधिक ठीक तो यही जान पड़ता है कि वह जनताकी परीक्षा लेना चाहती है। उसे इसका अधिकार है। यदि जनता इस कसौटी पर खरी उतरती है तो उसी क्षण उसकी विजय हो जाये। इस कसौटीके विरोधमें हमें कुछ भी नहीं कहना है।

  1. मॉण्टेग्युने कॉमन्स सभामें घोषणा की थी कि "यदि श्री गांधी 'असहकार' का आग्रह करते रहे तो पिछले वर्ष उनकी कार्रवाइयोंके प्रति जो रुख अपनाया गया था वैसा रुख अपनाना नितान्त असम्भव हो जायेगा।"