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७५. भाषण : खिलाफत दिवसपर बम्बईमें [१]

१ अगस्त, १९२०

श्री गांधीने निम्नलिखित प्रस्ताव रखा :––

यह बैठक लिखित रूप में केन्द्रीय खिलाफत समितिके उस आन्दोलनके प्रति सहानुभूति व्यक्त करती है जो उसने टर्कीके साथ संधिकी शर्तोंमें मुसलमानोंकी भावनाओं और इस्लाम धर्मके अनुकूल सुधार करवाने के लिए शुरू किया है और जो इन शर्तोंमें संशोधन होनेतक जारी रहेगा। यह बैठक खिलाफत समिति द्वारा चलाये जानेवाले इस असहयोगको ठीक भी मानती है। यह सभा साम्राज्य सरकारसे, उस साम्राज्यके हितमें जिसकी वह प्रतिनिधि मानी जाती है, सादर अनुरोध करती है कि वह उन संधि-शर्तोंमें संशोधन करवाये जिनको सभीने अन्यायपूर्ण और स्पष्ट ही मन्त्रियोंकी घोषणाके प्रतिकूल बताया है।

श्री गांधीने कहा कि समाचारपत्रोंके जरिये सरकार और अन्य लोग मुझसे कहते हैं कि असहयोगके इस प्रश्नपर भारत मेरे विचारोंसे सहमत नहीं है। वे यह भी कहते हैं कि असहयोग आन्दोलनका परिणाम देशका सर्वनाश होगा। ऐसी हालतमें जो लोग असहयोग आन्दोलनमें शरीक हुए हैं वे इन बातोंका खंडन केवल सभाओंमें शामिल होकर और प्रस्ताव पास करके नहीं बल्कि सर्वोत्तम ढंगसे तो असहयोगके कार्य-क्रमपर अमल करके ही कर सकते हैं। इस सिलसिलेमें उन्हें सबसे पहले अपने-अपने खिताब, तमगे और अवैतनिक पद त्याग देने चाहिए। मैं जानना चाहूँगा कि इस सभामें शरीक होनेवाले लोगोंमें से कितनोंने ऐसा किया है। यहाँ जो लोग मौजूद हैं शायद उनमें से बहुत थोड़े लोगोंके पास ऐसे खिताब और अवैतनिक पद हैं। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि स्वयं जिनके पास कोई खिताब या तमगा नहीं है उनका इस सम्बन्धमें कोई कर्त्तव्य नहीं बचता। उनका कर्त्तव्य है कि वे जिनको खिताब और अवैतनिक पद प्राप्त हैं, उनसे पूरे आदरके साथ उन पदों और खिताबोंको त्याग देनेके लिए कहें। सबसे पहले अवैतनिक न्यायाधीशों (ऑनरेरी मैजिस्ट्रेटों) से अपने पदोंको छोड़ देने को कहना चाहिए। अपने मित्रोंसे कहना चाहिए कि वे सरकारी स्कूलोंसे अपने बच्चोंको उठा लें। अध्यापकोंसे भी वे अपने पद त्यागनेको कहें। इस सबका असर यह होगा कि सरकारको मालूम हो जायेगा कि लोग उसके शिक्षा-संस्थानोंके बिना काम चलानेका निश्चय कर चुके हैं। अभिभावक अपने बच्चोंको गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाये जा रहे स्कूलोंमें भेज सकते हैं। फिर जैसी शिक्षा वे इन सरकारी स्कूलोंमें पा रहे हैं उसे देखते हुए यदि बच्चे साल-छः महीने स्कूल न

  1. केन्द्रीय खिलाफत समितिके तत्त्वावधानमें; सभाकी अध्यक्षता मियाँ मुहम्मद छोटानीने की थी।