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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जायें तो मुझे नहीं लगता कि उनकी कुछ हानि होगी। तीसरे मैं सभी वकीलोंसे वकालत छोड़ देने को कहूँगा। अदालतोंमें वकालत जारी रखकर वकील जनताकी सेवा करते हैं; इस विचारको मैं कतई ठीक नहीं मानता। मेरा खयाल है कि यदि वकालतके बजाय वे जनताकी भलाईके लिए खिलाफतका अथवा अन्य कोई काम करें तो देशकी अधिक सेवा होगी। कुछ लोगोंने यह आशंका व्यक्त की है कि अदालत गये बिना अपने मामलोंका फैसला करा पाना शायद सम्भव नहीं होगा। मैं समझता हूँ कि यदि वे अपने 'पंच' चुन लें तो अपेक्षाकृत कम खर्च और कम समयमें अदालतोंका सहारा लिये बिना वे न्यायको आशा कर सकते हैं। फिर मैं आपसे कहूँगा कि आप मैसोपोटामियामें कोई असैनिक पद स्वीकार न करें क्योंकि ऐसी सरकारके अधीन पद स्वीकार करना जो उस देशपर शासन करना चाहती है, जो इस्लामके तीर्थस्थल जजीरत-उल-अरबका भाग है, खिलाफतके अहितमें काम करना है।

आगे बोलते हुए श्री गांधीने कहा कि अपना उद्देश्य हासिल करने के लिए आपको सबसे पहला काम यही करना है। दूसरा काम स्वदेशीका कड़ाईसे पालन करना है। जैसा कि मैंने मुजफ्फराबादमें[१]हालकी सभामें कहा था, यह काम आपके आन्दोलनकी सफलता के लिए दो जरूरी चीजोंमें से एक है। मैंने तब भी कहा था जिसे आज भी दुहराता हूँ कि आपको असहयोगके सिलसिलेमें दो शर्तोंका दृढ़तासे पालन अवश्य करना होगा——वे शर्तें हैं अहिंसा और स्वदेशी। आपकी ओरसे की गई किसी भी तरहकी हिंसा असहयोगको असफल कर देगी; मैं आप सबसे हिंसासे बचनेको कहूँगा। आपको क्रोध नहीं करना चाहिए। फिर यदि आप चाहते हैं कि आपका आन्दोलन सफल हो तो आपको त्याग करने लिए तैयार रहना चाहिए। अन्य बातोंके साथ आप अच्छे कपड़ोंका शौक छोड़कर भी त्याग कर सकते हैं। जब मैं स्वदेशीकी हिमायत कर रहा था, श्री हसरत मोहानीने मुझे बताया कि शायद उत्तर भारतके लोग बारीक सुन्दर सूतके कपड़ोंके बिना काम नहीं चला सकते। लोगोंकी जिस असमर्थताका उल्लेख हसरत मोहानीने किया है मैं तो उसे समझ ही नहीं सकता। पच्चीस वर्ष पहले भारतके लोग घरके कते मोटे सूतके कपड़ेसे अच्छी तरह काम चला लेते थे; परन्तु अब मैनचेस्टरके कपड़ेने उनकी रुचि और विचार बदल दिये हैं। आज हमारा वस्त्र-उद्योग जिस दशामें है उसमें सूती कपड़की हमारी मिलें अच्छा महीन कपड़ा तैयार करनेमें समर्थ नहीं हैं। लोगोंको मोटे कपड़ेसे सन्तुष्ट होना चाहिए। फिलहाल उपाय यही है कि हाथ करघा उद्योगका पुनरुत्थान किया जाये। यदि प्रत्येक हिन्दुस्तानीके घरमें चरखा हो जाये तो हम स्थानीय बुनकरोंके लिए पर्याप्त सूत कात सकते हैं। वे उसे बुनकर कपड़ा तैयार कर देंगे और जब वे देखेंगे कि उनके देशभाई विदेशी कपड़े छोड़ने और अच्छे बारीक कपड़े के लिए खासे दाम देनेकी भी तैयार हैं तो वे वैसा

  1. देखिए "भाषण : बम्बईमें", २९-७-१९२० ।