कुरानकी कुछ आयतें पढ़नेके बाद सभाकी कार्रवाई शुरू हुई। उसके बाद अध्यक्षने उपस्थित जनसमूहसे कहा, "मुझे इस बातका खेद है कि श्री छोटानी सभामें नहीं आ सके। मैं आशा करता हूँ कि वे जल्दी ही अच्छे हो जायेंगे और पहलेकी तरह मन लगाकर खिलाफत समितिका कार्य करने लगेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि मेरे लिए और हम सबके लिए यह प्रसन्नताकी बात है कि भाई मुहम्मद अली और उनके साथियोंने पूरे परिश्रमसे खिलाफत सम्बन्धी काम किया और उसके बाद सही-सलामत अपने वतन लौट आये।
मौलाना मुहम्मद अलीके लिए मेरे दिलमें कितना स्नेह है उसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। अली बन्धुओंसे सर्वप्रथम मेरी भेंट १९१५में दिल्लीमें हुई, बादमें अलीगढ़में भी मेरी उनसे मुलाकात हुई। मैं उनसे काफी प्रभावित हुआ। उस समय मुझे ऐसा लगा कि श्री गोखलेको हिन्दुओंमें जो सम्मान प्राप्त है वहीं एक दिन दोनों भाइयोंको मुसलमानोंमें प्राप्त होगा। मुझे इस बातकी खुशी है कि मेरा यह विचार सच साबित हुआ है।
इसके बाद महात्मा गांधीने मौलाना मुहम्मद अलीसे अनुरोध किया कि उन्होंने खिलाफत के बारेमें यूरोपमें जो काम किया, जनताको उसके बारेमें बतायें।
ऑल अबाउट द खिलाफत
७८. लोकमान्य[१]
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक नहीं रहे। उनकी मृत्यु हो गई है, यह विश्वास करना कठिन है। वे जनताके अभिन्न अंग थे। जनतापर जितना प्रभाव उनका था उतना हमारे युगके और किसी व्यक्तिका नहीं था। उनके हजारों देशभाई उन्हें जिस श्रद्धाकी दृष्टिसे देखते थे वह असाधारण थी। निःसन्देह वे जनताके आराध्य थे। हजारों लोगोंके लिए उनके शब्द ही कानून थे। वास्तवमें हमारे बीचसे एक महामानव उठ गया है। सिंहकी आवाज मौन हो गई है।
अपने देशभाइयोंपर उनके इस जबरदस्त प्रभावका कारण क्या था? मेरी रायमें इसका उत्तर बहुत सीधा-सादा है। उनकी देशभक्तिकी भावना अत्यन्त प्रबल थी। स्वदेश-प्रेमके अलावा वे और कोई धर्म नहीं जानते थे। वे एक जन्मजात लोकतंत्रवादी थे। बहुमतके शासनमें उनका विश्वास कुछ इतना उग्र था कि मुझे तो सचमुच डर लगता था। लेकिन यही उनके प्रभावका कारण था। उनकी इच्छाशक्तिमें फौलादकी दृढ़ता थी और इसका उपयोग उन्होंने देशके लिए किया। उनका जीवन एक खुली पुस्तकके समान था——जिसे जो चाहे पढ़ ले। उनकी रुचियाँ बहुत सादी थीं। उनका व्यक्तिगत जीवन सर्वथा निष्कलंक व उज्ज्वल था। उन्होंने अपनी अद्भुत शक्तियाँ
- ↑ यह लेख यंग इंडियाके प्रथम पृष्ठपर मोटी काली रेखाओंके बीच छापा गया था।