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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१४९

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लोकमान्य

देशकी सेवामें अर्पित कर दीं। जैसी लगन और धुनके साथ स्वराज्यके सिद्धान्तका प्रचार लोकमान्यने किया वह अन्यतम थी। इसीलिए उनके देशवासी आँख मूँदकर उनका विश्वास करते थे। उनके साहसने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा। उनकी आशावादिता अदम्य थी। उन्होंने अपने जीवनमें ही स्वराज्यको पूर्ण रूपसे प्रतिष्ठित देखनेकी आशा की थी। और अगर वे असफल रहे तो इसमें उनका कोई दोष नहीं था। निश्चय ही वे स्वराज्यको कई वर्ष निकट ले आये हैं। अब यह हमारा काम है कि हम कमसे-कम समयमें उनके उस स्वप्नको एक सत्यमें परिवर्तित कर देनेके लिए दूने जोरसे प्रयत्न करें।

लोकमान्य तिलक नौकरशाहीके प्रबल शत्रु थे, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें अंग्रेजों और अंग्रेजी शासन से घृणा थी। मैं अंग्रेजोंको आगाह कर देता हूँ कि वे उन्हें कभी अपना शत्रु माननेकी भूल न करें।

मुझे पिछली कलकत्ता कांग्रेसके अवसरपर उनसे हिन्दीके राष्ट्रभाषा होनेके सम्बन्धमें एक बहुत ही विद्वत्तापूर्ण वार्त्ता सुननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था, और यह वार्त्ता उन्होंने पहलेसे कोई तैयारी किये बिना प्रस्तुत की थी। वे उसी समय कांग्रेस पंडालसे लौटे ही थे। हिन्दीपर उनकी गम्भीर वार्त्ता सुनना सचमुच एक बहुत ही आनन्ददायक अनुभव था। अपनी वार्त्तामें उन्होंने देशी भाषाओंके विकासकी ओर ध्यान देनेके लिए अंग्रेजोंकी बड़ी सराहना की। यद्यपि अंग्रेज जूरियोंके सम्बन्धमें उनका अनुभव बहुत बुरा रहा, फिर भी उनकी इंग्लैंड-यात्राने उन्हें ब्रिटिश लोकतंत्रका पक्का हामी बना दिया था, और उन्होंने बहुत ही गम्भीरताके साथ यह विचित्र-सा सुझावतक दे दिया कि भारतको चाहिए कि वह देशको सिनेमाके सहारे पंजाबके अन्यायसे परिचित कराये। इस घटनाका वर्णन मैं इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि इस सम्बन्धमें मैं उनसे सहमत हूँ (क्योंकि सच यह है कि मैं नहीं हूँ); बल्कि मेरा उद्देश्य यह दिखाना है कि अंग्रेजोंके प्रति उनमें घृणाका कोई भाव नहीं था। लेकिन उनके लिए यह सहन करना असम्भव था कि साम्राज्य के भीतर भारतका दर्जा अन्य देशोंसे कम हो।[]वे [साम्राज्यके सभी देशोंमें] तत्काल समानता चाहते थे। उनका विश्वास था कि यह समानता उनके देशका जन्मसिद्ध अधिकार है। और भारतकी स्वतंत्रताके लिए लड़ते हुए उन्होंने सरकारको बख्शा नहीं। इस लड़ाईमें उन्होंने न तो किसीके साथ कोई रियायत की और न किसीसे रियायतकी माँग की। मुझे आशा है कि भारतके इस पूज्य पुरुषकी योग्यताको अंग्रेज लोग भी स्वीकार करेंगे।

जहाँतक हम भारतवासियोंकी बात है, भावी पीढ़ियाँ उन्हें आधुनिक भारतके निर्माताके रूपमें याद करेंगी। वे उन्हें एक ऐसे व्यक्तिके रूपमें स्मरण करेंगी जो उनके लिए जिया और उनके लिए मरा। ऐसे व्यक्तिको मृत कहना ईश-निन्दाके समान है। उनके जीवनका जो स्थायी तत्त्व था वह तो सदा-सदाके लिए हमारे साथ रहेगा। आइए, अब हम भारतके इस एकमात्र लोकमान्यकी बहादुरी, सादगी तथा अद्भुत

  1. यहाँ मूलमें छपाईकी कुछ भूल रह गई जान पड़ती है। उसे सुधारकर अनुवाद किया गया है।