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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कर्मठता और देशप्रेमके गुणोंकी अपने जीवनमें उतारें और इस प्रकार उनका एक अमर स्मारक खड़ा करें। ईश्वर उनकी आत्माकी शान्ति दे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-८-१९२०

 

७९. कांग्रेस और असहयोग

माननीय पंडित मालवीयजीके प्रति मेरे मनमें अत्यधिक आदरभाव है और मैंने अक्सर उनके लिए धर्मात्मा शब्दका प्रयोग किया है। इन्हीं पंडित मालवीयजीने मुझसे सार्वजनिक रूपसे और निजी तौरपर भी यह अनुरोध किया है कि जबतक कांग्रेस असहयोगके प्रश्नपर अपना मत व्यक्त न कर दे तबतक उसे स्थगित रखा जाये। 'मराठा' ने भी ऐसा ही किया है। इन अनुरोधोंके कारण मुझे एक बार रुककर इस सम्बन्धमें विचार करना पड़ गया, लेकिन मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि काफी सोचने-विचारने पर भी मैं उनके अनुरोधोंको स्वीकार नहीं कर पाया हूँ। पंडितजीको प्रसन्न करनेके लिए मैं बहुत-कुछ कर सकता हूँ, बहुत-कुछ दे सकता हूँ। मैं अपने सभी कार्योंके लिए उनका समर्थन और आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता हूँ। लेकिन एक उच्चतर कर्त्तव्यका मुझसे तकाजा है कि असहयोग समितिने जो कार्यक्रम निश्चित कर दिया है, उससे मैं पीछे न हटूँ। जीवनमें कुछ ऐसे क्षण आते हैं जब आपके लिए कोई ऐसा काम करना भी जरूरी हो जाता है जिसमें आपके अच्छेसे-अच्छे मित्र भी आपका साथ न दे सकें। जब कभी कर्त्तव्यको लेकर आपके मनमें द्वन्द्व पैदा हो जाये उस समय आपको अपने अन्तरकी शान्त और क्षीण आवाजपर ही निर्णय छोड़ देना चाहिए।

अभी मुझसे असहयोग स्थगित रखनेका अनुरोध करनेका कारण यह है कि शीघ्र ही कांग्रेसकी बैठक होगी और उसमें वह असहयोगके पूरे सवालपर विचार करके उसके सम्बन्धमें अपना निर्णय देगी। इसलिए (मालवीयजीका कहना है) कि कांग्रेसके निर्णयकी प्रतीक्षा करना अच्छा होगा। मेरी नम्र सम्मतिमें, जिस मामलेमें मनमें किसी प्रकारका सन्देह नहीं है, उस सिलसिलेमें कोई काम करने से पूर्व कांग्रेस से परामर्श करना किसी कांग्रेसीका कोई कर्त्तव्य नहीं है। अन्यथा करनेका अर्थ होगा गत्यवरोध।

कांग्रेस तो आखिरकार राष्ट्रके विचारोंको वाणी देनेवाली संस्था है। और जब किसीके पास ऐसी कोई सुविचारित नीति या कार्यक्रम हो जिसे वह चाहे कि सब लोग स्वीकार करें या अपनायें, लेकिन साथ ही वह उसके पक्षमें जनमत भी तैयार करना चाहता हो, तो स्वभावतः वह कांग्रेससे उसपर विचार करने और उसके सम्बन्धमें अपना मत स्थिर करनेको कहेगा। लेकिन जब किसीका किसी नीति विशेष या कार्य विशेषमें अडिग विश्वास हो तब उसपर कांग्रेसके मतकी प्रतीक्षा करना उसकी