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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और देशकी सेवा तभी कर सकता हूँ जब मैं उन विचारोंपर आचरण करके कांग्रेसके सामने ऐसी सामग्री प्रस्तुत करूँ जिसके आधारपर वह अपना मत निश्चित करे।

मेरे लिए तो असहयोगको स्थगित करनेका मतलब मुसलमान भाइयोंके सामने बेईमान साबित होना है। उनका अपना एक धार्मिक कर्त्तव्य है, जिसे उन्हें पूरा करना है। साम्राज्य सरकारके मन्त्रियोंने न्यायके नियमोंकी अवमानना करके और अपने वचनोंको भंग करके उनकी धार्मिक भावनाको गहरी चोट पहुँचाई है। मुसलमानोंको अभी और इसी समय इसके प्रतिकार के लिए कदम उठाना है। वे कांग्रेसके निर्णयकी प्रतीक्षा नहीं कर सकते। वे तो कांग्रेससे सिर्फ यही अपेक्षा रख सकते हैं कि वह उनके कार्योंकी संपुष्टि करेगी और उनके दुःखोंको अपना मानकर इस गाढ़े वक्त में उनके कन्धेसे-कन्धा मिलाकर चलेगी। कांग्रेस द्वारा इस सम्बन्धमें अपनी कोई नीति निर्धारित करने तक वे अपने कदम रोक नहीं सकते, और न कांग्रेस द्वारा कोई विपरीत निर्णय करनेकी स्थितिमें वे उस समयतक उस रास्तेसे पीछे ही लौट सकते हैं, जबतक कि किसी और तरहसे यह सिद्ध न हो जाये कि उन्होंने जो कदम उठाया वह गलत था। खिलाफतका सवाल उनकी अन्तरात्माका सवाल है। और जहाँ अन्तरात्माका सवाल हो, वहाँ बहुमतका नियम नहीं चल सकता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-८-१९२०
 

८०. राजद्रोही कौन?

श्री मॉण्टेग्युने राजद्रोहकी एक नई परिभाषा खोज निकाली है। युवराजकी भारत-यात्राके समय उनके स्वागतका बहिष्कार करनेके मेरे सुझावको वे राजद्रोह मानते हैं और कुछ अखबारोंने उनकी बातसे प्रेरणा लेकर उन सभी लोगोंको "अशिष्ट" कह डाला है जिन्होंने वैसा सुझाव दिया है। इन "अशिष्ट" लोगोंपर उन्होंने स्वयं "युवराजका बहिष्कार करने" का सुझाव देने तकका आरोप लगाया है। मैं युवराजके बहिष्कार और उनके सरकारी स्वागत-प्रबन्धोंके बहिष्कारमें एक बुनियादी और गहरा अन्तर करता हूँ। अगर महाविभव युवराज बिना किसी सरकारी संरक्षण और वर्तमान सरकारके सुरक्षा-आयोजनके आयें या आ सकते हों तो, जहाँतक मेरी बात है, मैं उनका हार्दिक स्वागत करूँगा। युवराज एक संवैधानिक राजाके उत्तराधिकारी हैं, इसलिए उनकी गति-विधियोंका नियमन मन्त्रिगण करते हैं और उन्हें मन्त्रियोंके समादेशोंपर ही चलना होता है——भले ही ये समादेश अत्यन्त विनम्र कूटनीतिक भाषामें लपेटकर ही दिये गये हों। इसलिए बहिष्कारके समर्थकोंने जब बहिष्कारका सुझाव दिया तो दरअसल उन्होंने उद्धत नौकरशाही और महामहिमके बेईमान मन्त्रियोंके ही बहिष्कारका सुझाव दिया।

आप दोनों हाथोंमें लड्डू चाहें, यह तो नहीं हो सकता। यह सच है कि संवैधानिक राजतन्त्रमें राज-परिवार राजनीतिसे ऊपर होता है, लेकिन यह नहीं हो सकता कि