व्यक्तियों और राजाओंके साथ सहयोग करनेके कर्त्तव्यका। सच तो यह है कि दुनियाके अधिकांश धर्मग्रन्थोंने तो असहयोगसे भी आगे जाकर ऐसा विधान किया है कि किसी अन्यायको भीरुताके साथ स्वीकार कर लेनेसे अच्छा तो हिंसाके सहारे उसका प्रतिकार करना है। घोषणापत्रमें हिन्दुओं की धार्मिक परम्पराओंकी दुहाई दी गई है। लेकिन ये परम्पराएँ तो बहुत स्पष्ट रूपसे असहयोग के कर्त्तव्यका प्रतिपादन करती हैं। प्रह्लाद अपने पितासे अलग हो गया, मीराबाई अपने पतिसे और विभीषण अपने क्रूर भाईसे।
सांसारिक पहलूकी चर्चा करते हुए घोषणापत्रमें कहा गया है कि "राष्ट्रोंके इतिहासमें ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जिससे प्रकट हो कि जब कभी इसका (अर्थात् असहयोगका) सहारा लिया गया हो और यह सफल हुआ हो या इससे कुछ लाभ हुआ हो।" असहयोगकी शानदार सफलताका एक बिलकुल ताजा उदाहरण हमारे सामने मौजूद है। जनरल बोथाने लॉर्ड मिलनरकी सुधार-योजनाके अनुसार गठित नई कौंसिलोंका बहिष्कार किया और इस प्रकार उन्होंने देशके लिए एक सर्वांगपूर्ण और सुन्दर संविधान प्राप्त किया। रूसके दुखोबर[१]लोगोंने असहयोग किया, और यद्यपि उनकी संख्या बहुत छोटी थी फिर भी सम्पूर्ण सभ्य संसार उनके दुःखोंसे इतना अभिभूत हो गया कि कैनेडा उन्हें रहनेको स्थान देनेके लिए तैयार हो गया और अब वे वहाँ एक समृद्धिशाली समुदायके रूपमें रह रहे हैं। स्वयं भारतमें ऐसे दर्जनों उदाहरण मिलते हैं, जब छोटे-छोटे राज्योंकी प्रजाने बहुत दुःखी हो जानेपर अपने सरदारोंसे सारे सम्बन्ध तोड़ लिये और इस तरह उन्हें अपनी बात स्वीकार करनेपर मजबूर किया। मुझे तो इतिहासमें ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता जब कोई सुनियोजित असहयोग विफल हुआ हो।
यहाँतक तो मैंने अहिंसक असहयोगके ऐतिहासिक दृष्टान्त दिये ह। मैं नहीं समझता कि अपने सुविज्ञ पाठकोंको हिंसक असहयोगके भी ऐतिहासिक दृष्टान्त बताना मेरे लिए जरूरी है, क्योंकि इसके तो बहुत सारे दृष्टान्त उन्हें मालूम ही होंगे। लेकिन मैं इतना अवश्य कहूँगा कि हिंसक असहयोग जितने अवसरोंपर सफल हुआ है उतने ही अवसरोंपर विफल भी हुआ है। और चूँकि मैं इस तथ्यसे अवगत हूँ इसलिए मैंने देशके सामने एक अहिंसक असहयोगकी योजना प्रस्तुत की है, जिसे अगर सन्तोषजनक ढंगसे कार्यान्वित किया गया तो सफलता निश्चित है और अगर उसका कोई परिणाम न भी निकले तो भी उससे कोई हानि होनेकी सम्भावना निश्चय ही नहीं है। कारण, मान लीजिए कि एक भी व्यक्ति अपने पदसे त्यागपत्र देकर असहयोग करता है तो इससे वह कुछ प्राप्त ही करता है, खोता नहीं। यह इसका धार्मिक या नैतिक पहलू है। यह कोई राजनीतिक परिणाम लाये, इसके लिए बहुत सारे लोगोंका विभिन्न प्रकारसे समर्थन मिलना आवश्यक है। इसलिए मुझे असहयोगसे किसी भयंकर परिणामकी आशंका नहीं है। अलावा इसके हो सकता है, कि लोग उत्तेजनाके वशीभूत होकर या किसी और कारणसे कहीं कुछ हिंसात्मक कार्रवाई कर बैठें। लेकिन मैं तो एक
- ↑ रूसका एक धार्मिक सम्प्रदाय, जो किसी भी चर्चका बन्धन स्वीकार न करके स्वतन्त्र धर्म-साधनामें विश्वास रखता था। १८९८ में इस सम्प्रदायके लोग रूस छोड़कर कैनेडामें जा बसे।