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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्पूर्ण जातिके पुंसत्वहीन बना दिये जानेके खतरेके मुकाबले हिंसाका खतरा उठाना हजार गुना ज्यादा पसन्द करूँगा।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-८-१९२०
 

८२. गोरक्षा

हिन्दू धर्ममें गोरक्षाका बहुत माहात्म्य है। यह धर्म-विहित तो है ही, साथ ही एक धर्मेतर सिद्धान्तके रूपमें भी यह मनुष्यको ऊपर उठानेवाली चीज है। लेकिन आज हम हिन्दुओंमें गाय और गोवंशके लिए कोई खयाल ही नहीं रह गया है। भारतमें मवेशियोंके खाने-पीने और रहनेकी जैसी बुरी दशा है वैसी संसारके अन्य किसी देशमें नहीं है। इंग्लैंडके लोग गोमांस खाते हैं, लेकिन वहाँ भी ऐसी गायें नहीं मिलेंगी जिनके हाड़ चमड़ीके भीतरसे झाँकते दिखाई दें। हमारे अधिकांश पिंजरापोलोंका प्रबन्ध बहुत बुरा है और वहाँ व्यवस्था नामकी कोई चीज़ नहीं दिखाई पड़ती। वे पशु-जगत्के लिए सच्चे वरदानके बदले ऐसे गोदाम बन गये हैं जिनमें सिर्फ मरणासन्न पशुओंको ही लाया रखा जाता है। भारतके अंग्रेजोंसे, जिनके लिए यहाँ प्रतिदिन सैकड़ों गायें मारी जाती हैं, हम कुछ नहीं कहते। स्वयं हमारे राजा लोग ही अपने अंग्रेज मेहमानोंकी गोमांस परोसनेमें तनिक भी नहीं हिचकिचाते। इसलिए हमारी गोरक्षा गौओंको मुसलमानोंके हाथोंसे बचानेतक सीमित है। गोरक्षाके इस उलटे तरीकेके कारण हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच न जाने कितने फसाद हुए हैं और कितना द्वेष उत्पन्न हुआ है। इसके कारण शायद उससे अधिक गोहत्या हुई है जितनी कि अगर हमने सही ढंगसे प्रचार किया होता तब हुई होती। हमें इसका प्रारम्भ तो स्वयं अपनेसे ही करना चाहिए था। और आज भी अपनेसे ही करना चाहिए। इसी तरह हम सारे देशमें ऐसा उपयोगी प्रचार कर सकते हैं जिससे लोगोंके मनमें पशुओंके प्रति दयापूर्ण व्यवहार करनेकी भावना जगे और वे पशु-शालाओं, डेरियों और पिंजरापोलोंकी व्यवस्था वैज्ञानिक ढंगसे करना सीखें। हमें अंग्रेजोंके बीच इस ढंगका प्रचार करना चाहिए जिससे वे स्वेच्छासे गोमांस खाना छोड़ दें, या अगर वे न छोड़ें तो विदेशसे आयात किये गये गोमांससे ही सन्तोष करें। हमें भारतसे पशुओंके निर्यातपर रोक लगवानेकी व्यवस्था करनी चाहिए और ऐसे उपायोंसे काम लेना चाहिए जिससे हम लोगोंकी जरूरत पूरी करनेके लिए अधिक मात्रामें और शुद्ध दूध प्राप्त कर सकें। मुझे इसमें रंचमात्र भी शंका नहीं है कि अगर हम इन समझदारीपूर्ण तरीकोंसे काम करें तो मुसलमान लोग इसमें स्वेच्छासे हमारी सहायता करने लगेंगे, और जब हम उनके त्योहारोंके अवसरपर उन्हें गोवध करनेसे रोकनेके लिए उनके साथ जोर-जबरदस्ती करना बन्द कर देंगे तो देखेंगे कि उनके पास गोवधका आग्रह रखनेका कोई कारण ही नहीं रह गया है। अगर हमने किसी