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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भाषाका त्याग करें तथा मातृभाषाका अच्छा ज्ञान प्राप्त कर अपने विचारोंको उसमें अभिव्यक्त करें। संस्कृत भाषाका अध्ययन करके अपने धर्मकी विशेषताओंको, जो हमारे शास्त्रोंमें छिपी हुई हैं, प्रकाशमें लायें। वे स्वदेशी प्रेमी थे; हम स्वदेशीका अर्थ समझकर स्वदेशीपर आचरण करें। उन्हें देशके प्रति अगाध-प्रेम था; हम भी अपने जीवनमें वैसे ही प्रेमका विकास करें तथा यथाशक्ति दिन-प्रतिदिन देशसेवामें अधिक-से- अधिक निरत हों। ऐसा करनेमें ही उनकी सच्ची पूजा होगी। जिनसे यह नहीं हो सकता वे उनकी स्मृतिमें एक पैसेसे लेकर अधिक-से-अधिक जितना धन देना चाहें दें, और इस तरह प्राप्त हुई रकमको राष्ट्रीय स्कूलोंकी स्थापनामें, योग्य विद्यार्थियोंके लिए शिक्षा प्राप्त करनेके निमित्त छात्रवृत्तियाँ देने अथवा अन्य सार्वजनिक कार्योंमें लगाया जाये।

लोकमान्य चालू शासन-पद्धतिके कट्टर शत्रु थे, लेकिन कुछ लोगोंके मनमें यह जो धारणा है कि उन्हें अंग्रेजोंसे अरुचि थी वह गलत है। मैंने स्वयं उनके मुखसे अनेक बार अंग्रेजोंकी प्रशंसा सुनी है। वे अंग्रेजोंके साथ किसी भी तरहके सम्बन्धको सर्वथा अनिष्टकारक नहीं मानते थे। अलबत्ता वे इतना अवश्य चाहते थे कि अंग्रेज उन्हें तथा भारतीय जनताको अपने समकक्ष मानें। अंग्रेजोंके अथवा किसीके भी अधीन रहना उन्हें तनिक भी पसन्द न था।

उन्हें ब्रिटेनकी आम जनतापर ऐसी श्रद्धा थी कि एक बार उन्होंने यह विचित्र सुझाव रखा था कि सिनेमाके द्वारा ब्रिटिश जनताको पंजाबके अत्याचारोंसे परिचित कराया जाये।

ऐसे प्रौढ़ देशभक्तका स्वर्गवास होनेपर हम शोक मना रहे हैं। जिस देह से हमने उन्हें जाना था यदि वे उसी देहमें बने रहते तो हमें लाभ होता, यह निर्विवाद है; लेकिन ऐसे व्यक्ति देह रहे या न रहे तो भी देशसेवा करते रहते हैं, देशकानेतृत्व किया करते हैं। जिन्होंने अपने कार्यक्रमको निश्चित कर लिया था, जिन्होंने उस कार्य-क्रमके अनुसार पैंतालीस वर्षोंतक कार्य किया, जिन्होंने अपनी देहको देशसेवामें ही जीर्ण कर दिया, वे देहपात होनेपर जन-मनसे विस्मृत नहीं हो सकते, कभी नहीं मर सकते। इसलिए हमें यह मानना चाहिए कि लोकमान्य तिलक मरकर भी हमें जीवित रहने का मन्त्र दे गये हैं।

[गुजराती से]
नवजीवन, ८-८-१९२०