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८७. कांग्रेसका स्थान

माननीय पंडित मालवीयजी मेरे निकट सदैव वन्दनीय हैं। उन्हें मैं धर्मात्माके रूपमें जानता हूँ। उन्होंने मुझे सलाह दी है कि कांग्रेसका विशेष अधिवेशन होनेतक मुझे असहकारको मुल्तवी रखना चाहिए। वैसी ही सलाह 'मराठा' के सम्पादक तथा अन्य लोगोंने भी दी है। पंडितजीकी सलाहको न मानना मेरे लिए दुःखद बात है। मैं अनेक कष्ट सहकर भी उनकी सलाहको माननेके लिए तैयार हूँ। लेकिन जहाँ मेरी अन्तरात्मा मुझे कुछ और ही करनेके लिए कहती है वहाँ मैं विवश हो जाता हूँ और दीनताका अनुभव करते हुए भी सलाह नहीं मान पाता। मेरे लिए यह ऐसा ही प्रसंग सिद्ध हुआ है।

मेरा असहकारको मुल्तवी रखनेका अर्थ मुसलमान भाइयों द्वारा भी उसे स्थगित करना हुआ। खिलाफत सम्बन्धी शर्तोंके प्रकाशित हो जानेके बाद असहकार उनका धर्म हो गया है। जिन्होंने उनके धर्मका अपमान किया है, उनके धर्मको संकटमें डाला है, वे उनकी मदद कर कैसे सकते हैं। उनकी भेंटको किस तरह स्वीकार करें? और फिर सारी जनताको विचारपूर्वक असहकारकी सलाह देनेके बाद, अत्यन्त सबल और अकाट्य कारणोंके अभावमें मैं असहकार मुल्तवी कैसे कर सकता हूँ? खिलाफतके प्रश्नपर असहकारको चालू रखना मेरे लिए स्वधर्म हो गया है।

इतना तो वर्तमान स्थितिको देखते हुए कथनीय था। लेकिन आइये, अब हम कांग्रेसकी स्थितिका अध्ययन करें। मेरी नम्र रायमें कांग्रेस प्रतिवर्ष जनताकी वृत्तिका, उसके विचारोंका लेखा-जोखा करती है। कांग्रेस सामान्य रूपसे जनताको नया रास्ता नहीं दिखाती। यह बतानेका काम कांग्रेसका नहीं है। कांग्रेसकी प्रतिष्ठा इसीलिए है कि वह जन-मतका प्रतिनिधित्व करनेवाली संस्था है। इसीलिए कांग्रेस अधिवेशन होनेतक और उसके द्वारा कोई नवीन प्रवृत्ति प्रारम्भ करने तक हमारा चुपचाप बैठे रहना ठीक नहीं है। यदि हम ऐसा करें तो कांग्रेस प्रगति कर ही नहीं सकती। यदि हम कांग्रेसके मतको जानने तक असहकारको मुल्तवी रखें तो वह हमेशा मुल्तवी ही रहेगा। अगर लोगोंका अपना निश्चित मत न हो तो कांग्रेस जनतासे एकदम भिन्न कोई वस्तु तो है नहीं कि लोग उससे उसका मत वरदानकी तरह पा सके। अमुक वस्तुके पक्षमें जबतक बहुमत नहीं बन जाता तबतक कांग्रेस अपनी राय व्यक्त नहीं करती। इसका अर्थ केवल इतना ही है कि अल्पमतवालों को तमाम मुश्किलोंके बीच अपना कार्य करते ही रहना चाहिए। उनकी प्रवृत्तिको कांग्रेस रोकती नहीं, रोकना भी नहीं चाहती, रोकनेका अधिकार उसे है भी नहीं। इसलिए जिन्हें अमुक सुधार पसन्द हैं, जिन्हें अपनी शक्तिके बारेमें श्रद्धा है और जो कांग्रेसके पक्षके हैं, उनका कांग्रेसके प्रति यह कर्त्तव्य है कि वे अपने सुधारोंको जनताके सम्मुख पेश करें, उनपर अमल करें जिससे कांग्रेसको अपना मत स्थिर करतेकी सामग्री मिले। सब सुधार इसी तरहसे हुए