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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/१६७

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८९. गोरक्षा

गोरक्षा मुझे अत्यन्त प्रिय है। यदि कोई व्यक्ति मुझसे प्रश्न करे कि हिन्दू धर्मका सबसे महत्त्वपूर्ण बाह्य स्वरूप क्या है——तो उत्तरमें मैं कहूँगा गोरक्षा। [लेकिन] वर्षो से मैंने यह अनुभव किया है कि हम अपने इस धर्मको भूल गये हैं। मैंने संसार-भरमें ऐसा कोई मुल्क नहीं देखा जहाँ गोवंशकी हालत हिन्दुस्तानके समान बुरी हो। इसीसे हमें हिन्दुस्तानके मवेशियोंकी जितनी पसलियाँ दिखाई देती हैं उतनी किसी अन्य देशके मवेशियोंकी नहीं दिखाई देतीं। अंग्रेज लोग गोमांस भक्षण करते हैं; तथापि इंग्लैंडमें मैंने कोई दुर्बल पशु नहीं देखा।

जैसे हमारे ढोर दुबले, वैसे हम दुबले। जहाँ ढोर भूखे मरते हैं वहाँ अगर तीन करोड़ लोग भूखे मरें तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है।

हमारे पिंजरापोलोंकी दशा देखिए! व्यवस्थापकोंकी उदारताके प्रति तो मेरे हृदयमें सम्मानका भाव है, लेकिन उनकी व्यवस्थाके सम्बन्धमें बहुत कम सम्मान है। पिंजरापोल गाय और उसके वंशकी रक्षा करते हैं, मैं यह नहीं मानता। पिंजरापोल कोई निकम्मे पशुओंको रखने या उन्हें भूखे मरने देनेका ही स्थान नहीं होना चाहिए। पिंजरापोलमें मैं आदर्श गाय-बैलोंको देखनेकी आशा रखता हूँ। पिंजरापोल शहरोंके बीच न होकर बड़े-बड़े खेतोंमें होने चाहिए एवं उनपर बेशुमार दौलत खर्च की जाये इसके बदले उनसे बेशुमार दौलत प्राप्त होनी चाहिए।

हिन्दुस्तानके पशुओंको हिन्दू किस तरहसे रखते हैं? उनके बदलमें नुकीला पैना कौन कोंचता है? उनपर असह्य बोझ कौन लादता है? उन्हें कम चारा कौन देता है? उनसे आवश्यकतासे अधिक काम कौन लेता है?

मेरी दृढ़ मान्यता है कि हिन्दुओंका प्रथम कर्त्तव्य अपने घरको ही साफ करना है। मुझमें शक्ति हो, मेरे पास समय हो तो मैं पिंजरापोलोंको सुधारनेमें, जनताको पशुओंकी देखभाल करनेका शास्त्रीय ज्ञान देनेमें, निर्दयी हिन्दुओंको अपने पशुओंके प्रति दयाभावकी शिक्षा देनेमें, गरीब से गरीब बालक या रोगीके पास स्वच्छ दूध पहुँचानेमें गोरक्षा मंडलियोंको लगाऊँ। और मैं सबसे पहले हिन्दुओंसे ऐसी मंडलियोंकी व्यवस्थाका महान् कार्य करनेके लिए कहूँगा।

तत्पश्चात् मैं अंग्रेजोंसे गोमांसका त्याग करनेकी विनती करूँगा। राजा लोग [अक्सर] अंग्रेज मेहमानोंकी आवभगत करते समय अपने मुख्य धर्मको भूल उन्हें गोमांस देने में नहीं हिचकिचाते। मैं उन्हें इस अधर्माचरणके लिए लज्जित करूँगा तथा उसे त्याग देनेका अनुरोध करूँगा।

इतना करनेके बाद ही मुझे अपने मुसलमान भाइयोंसे गोवध बन्द करनेके लिए कहनेका अधिकार होगा। इस तरह यह बिलकुल स्पष्ट है कि हमारा धर्म क्या है। लेकिन हम इसे भूलकर अन्तिम कार्य पहले करने लग गये हैं। मुसलमान भाइयोंके हाथसे, सद्भावना अथवा बलपूर्वक भी गायों को मुक्त करवाने में हम अपने मनमें गोरक्षाकी